Wednesday 21 December 2011

मनुष्य के जीवन में क्या करना चाहिए

ü जब भी में इस विषय पर कुछ लिखने का प्रयास करता हूँ तो ना जाने क्यों मेरे अन्दर का लेखक मुझसे कहता है की ठहर जाओ इस एहसास को अपने तक ही सीमित रखो लेकिन मुझे आज भी यही लगता है कि प्यार तो एक जरुरत बनकर रह गया है कहाँ गए वो एहसास, जज्बात कुछ नहीं पता और शायद उनके वापस आने की भी उम्मीद नहीं | प्यार तो मनोरंजन का साधन बन गया है किसी की भावनाओं से खिलवाड़ करना किसी का अपनी ख़ुशी के लिए इस्तेमाल करना और दूसरों का जीवन बर्बाद करके अपने सपने संजोना |
ü प्रेमी - प्रेमिकाओं की तो बात छोड़िये भाई - बहन एक दूसरे के सगे नहीं रहे, बच्चे अपने माता - पिता पर बोझ लगने लगे रिश्ते - नाते तो रेशम की डोर की तरह नाजुक दहलीज़ पर आकर थम गए हैं | कोई अपने प्रेमी के लिए घर को छोड़ देता है तो कोई धन के मोह में अपनी ही औलाद का दुश्मन बन बैठता है, एक बार भी दिल नहीं पसीजता कि वो मेरी माँ है ! कैसे रहेगी मेरे बिना कौन है उसका मेरे सिवा उसने अपने बुढ़ापे के सहारे के लिए मुझे काबिल बनाया और आज में उसे ही छोड़ के जा रहा हूँ वो भी साल भर के प्यार के लिए, लेकिन नहीं में गलत हूँ ऐसा कोई नहीं सोचता उस वक़्त ना जाने क्यों अपने माँ - बाप भी उसे दुश्मन लगने लगते है और ऐसे कदम उठ जाते है जो शायद किसी के हित में नहीं |
ü आज किसीकी ख़ास गुजारिश पर मैंने इस विषय पर अपने विचार प्रकट किये है और आशा करता हूँ मेरा यह सहयोग शायद उसे जीने का ढंग सिखा दे | दोस्तों, कोई पाप नहीं मानता में प्यार या दोस्ती को, यह तो खुदा कि रहमत बरसती है और सभी इतने खुशकिस्मत नहीं होते जिन्हें प्यार नसीब हो शायद मैं भी नहीं लेकिन अगर आप पर वो रहमत बरसी है तो उस खुदा का शुक्रिया अदा कीजिये और अपनाइए उस प्यार को जो प्रेमी या प्रेमिकाओं के प्यार से काफी ऊपर है | प्यार दोबारा हो सकता है परिवार दोबारा नहीं मिल सकता उन्हें वो सब कुछ दो जो वो तुमसे चाहते है यह तुम्हारा फ़र्ज़ और उनका हक है क्योंकि उन्होंने अपना फ़र्ज़ पूरा कर दिया तुम्हे किसी लायक बनाकर, अब तुम्हारी बारी है सोचो और कुछ कर दिखाओ जिससे उन्हें जीने का नया आसरा मिल जाए....
ü नमस्ते, आज आपके और मेरे जैसे कई लोग ऐसे वक़्त से गुजर रहे हैं जो उनको दुःख का एहसास जताता है लेकिन हमें उसका दूसरा पहलु भी देखना चाहिए कि उस संघर्षमय जीवन से ही हम जीने का तरीका सीखते हैं अगर बिना परिश्रम के फल मिल जाए तो उसमे उतना आनंद नहीं जितना परिश्रम करने पर मिलता है I जीवन को हमेशा एक ही पहलु से मत देखिये अगर आपका जीवन बुरे वक़्त से प्रभावित हुआ भी है तो अच्छा वक़्त भी एक दिन खुशियाँ लाएगा ... लेकिन उसके लिए भी आपको धेर्य रखना पड़ेगा I


ü कभी - कभी जीवन में बुरा वक़्त इतने गहरे जख्म दे जाता है जिसके कारण इंसान बुरी तरह टूटकर मृत्यु पर आश्रित हो जाता है..घर के तनाव, मित्रो - सहयोगियों में अनबन या फिर किसी खास इंसान का जिंदगी से चले जाना एक सदमे जितना गंभीर लगता है ऐसे समय में इंसान जीने कि चाह छोड़ देना चाहता है लेकिन जो इन संघर्षों से सीखता हुआ अपना जीवन व्यतीत करता है वही आज कि दुनिया में सफल व्यक्तित्व में गिना जाता है ...
ü एक छोटा सा उदाहरण देना चाहूँगा एक लड़का था जिसकी आयु मात्र 15-16 वर्ष होगी और कक्षा 8 का छात्र था उसकी एक बड़ी बहन थी जिसकी शादी हो चुकी थी और वो उससे बहुत प्यार करता था एक तरह से वह अपनी बहन को अपना इश्वर मानता था किन्ही कारणवश उसकी बहन कि मृत्यु हो गयी वो लड़का वियोग में बिखर गया उसका जीवन जैसे समाप्त होने कि कगार पर था पर वो उठा और उस छोटी सी उम्र में संघर्ष के बाद उसने जीने का फैसला किया... आज वही लड़का इंजीनियरिंग कि पढाई कर रहा है और एक दिन सपनो को साकार होते देखेगा...
ü जब उस जरा से बच्चे ने हार नहीं मानी तो 25-३० वर्ष के युवा एक लड़की के जीवन में से चले जाने पर मृत्यु जैसे पाप के बारे में कैसे सोच लेते हैं अरे जीवन एक उपहार है भगवान का उसका आदर करके स्वीकार तो कर लिया लेकिन उसकी कद्र नहीं की... अगर कोई इस जीवन से जाता है तो इसका मतलब यही है कि उसका साथ यही तक था अब किसी और का वक़्त है या फिर खुद अपने बल पर जीने का... लेकिन अनावश्यक बातों के लिए समय और जिंदगी का मोल समझना बेवकूफी ही होगी... कोशिश करूँगा आप उस उदाहरण पर अमल कर अपना जीवन ख़ुशी और सफलतापूर्वक व्यतीत करेंगे A
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ü आज एक मासूम बेटी पैदा होने से पहले भगवान से यही विनती करती होगी की हे प्रभु ! मत भेजिए मुझे इस कलयुगी मायानगरी में जिसमें मेरी कोई इज्ज़त नहीं, मुझे दुत्कारा जाता है, मेरे स्वाभिमान को ठेस पहुंचाई जाती है, मुझे मेरे खुद के माता - पिता अपनाने को तैयार नहीं, क्या करूंगी में ऐसी दुनिया में ?
ü क्योंकि वो जानती है यहाँ कोई नहीं जो उसे उसके हक से उसे जीने देगा, वो सिर्फ एक बंदिनी है, जिसे सपने देखने तक का हक नहीं मिलता, आज की दुनिया में उसका काम सिर्फ घर पर माँ कि सहायता करना है और शादी के बाद ससुराल जाकर वहाँ जीवन व्यतीत करना है, उसे विद्या ग्रहण करने का भी हक नहीं दिया जाता ऐसा क्यों ?
ü आज हर पिता को एक पुत्र कि चाहत है, जो उसका वंश आगे बढ़ाये, आगे जाकर उसके व्यापार में सहायता करे, लेकिन जिस घर में कन्या जन्म लेती है उससे इतनी नफरत क्यों कि जाती है, बेटा एक वंश कि इज्ज़त है तो बिटिया तो घरों कि लाज होती है, और जो कार्य बेटा कर सकता है वो बेटी भी अगर उसे बराबर का हक दिया जाए तो लेकिन आज भी बहुत से ऐसे माँ - बाप है जो उसे पढ़ाते तक नहीं, सिर्फ घर के कुछ कार्य सिखाते है और जो उसके ससुराल में काम आये A आज अगर लड़का इंजिनियर बन सकता है तो मत भूलो उस कल्पना चावला को जो अन्तरिक्ष तक गयी या हमारी पूजनीय राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा पाटिल को समूचा देश संभल रही हैं l
ü पिछली जनगणना में जो लिंग अनुपात ९३३ प्रति १००० पुरुष था वो इस बार घटकर ९१४ प्रति १००० पुरुष रह गया, इससे ज्यादा शर्मनाक बात क्या होगी एक भारत जैसे महान देश के नागरिक रहते हुए, अगर अभी हमने सख्त कदम उठाये तो भविष्य के लिए हमें काफी परेशानियों से जूझना पड़ सकता है, अभी भी हमारी डोर हमारे हाथ में ही है A  बेटी भी आज उतना ही प्यार चाहती है जितना बेटा तो उसे आगे बढ़ने का मौका दो जिससे वो भी इस देश के महान हस्तियों के कंधे से कंधा मिला सके...
ü विद्या, एक बहुत महत्वपूर्ण वरदान है हमारे जीवन में, विद्या ने ही हमें जीवन का आधार समझाया, हमें जानवर से मनुष्य बनाया जिससे कि हम एक आदर्श जीवन व्यतीत कर सके परन्तु इस घोर कलयुगी दुनिया ने इस पवित्र वस्तु को भी नहीं छोड़ा और ऐसे बेच डाला जैसे यह शिक्षा नहीं कोई खिलौना हो ! आज की दुनिया में सिर्फ नाम के विद्यार्थी रह गए गए हैं, माँ सरस्वती को भी कितना कष्ट पहुँचता होगा जब वो अपने इस वरदान को मोल के भाव बिकता देखती होगी, मैंने भी यह अनुभव किया है कि आज विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण करने कि अपेक्षा अच्छे अंको से उत्तीर्ण होने के लिए पढ़ रहे है और वही विद्यार्थी महज कुछ अंको के लिए विद्या को चंद पैसों में बेचने जैसा घोर पाप कर देते हैं बिना सोचे कि इसका परिणाम क्या होगा?
ü अगर आज किसी का बच्चा पढ़ाई में कमजोर होता है तो उसके माँ-बाप उसे ,००० रूपये कि कोचिंग भेजना ठीक नहीं समझते उन्हें यह लगता है कि १२ महीने कोचिंग में १२,००० रूपये खर्च करने से क्या फायदा जबकि सिर्फ १०,००० रूपये नक़ल वालो देकर बच्चा पास हो जायेगा, क्या आप जानते है आपकी यह सोच कितनी खतरनाक है आप इससे अपने ,००० रूपये तो बचा लेंगे लेकिन आपके बच्चे का पूरा भविष्य उजड़ जायेगा, जरा ध्यान दीजिये जो बच्चा खुद काबिल है और मेहनत करके ८०% अंक प्राप्त कर सकता था आपने उसे नक़ल के भरोसे टिका दिया जिससे वो सिर्फ ४०-५०% प्राप्त कर पाया, एक और उदाहरण जब इतने कम अंको से आपके बच्चे का किसी अच्छे कॉलेज में दाखिला नहीं होता, तब आप उसे प्रवेश परीक्षा दिला कर - लाख कि रिश्वत देकर उसका दाखिला करवा देते है जिससे आपका बच्चा पूरी तरह अपाहिज हो जाता है उसे सिर्फ रिश्वत,नक़ल और आपके फैलाए हुए भ्रष्टाचार की लत लग जाती है क्योंकि आपने उसे शिक्षा से बचा - बचा कर बेकार कर दिया, अब देखिये आपका पैसा तो उस भ्रष्टाचार के गोरखधंधे में जाता है साथ ही उस मासूम बच्चे का भविष्य भी.....
ü फिर उस बच्चे को एहसास होता है कि काश! उस वक़्त मैंने परिश्रम किया होता तो आज में एक सफल व्यक्ति होता, इसी सोच और परेशानी में कभी-कभी बच्चे आत्महत्या जैसा पाप भी कर देते है I अरे भाई! " अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गयी खेत " पर हम अभी भी उन हजारों-लाखों विद्यार्थियों को बचा सकते है जिन्हें इस भ्रष्टाचार कि आंधी में धकेला जा रहा है I बंद करो भ्रष्ट नेता और अफसरों को रिश्वत खिलाना, अपने हाथ में दम है रे अपनी लात में दम है रे हम क्या किसी से कम है एक जुट हो कर हम इस भ्रष्टाचार क्या ऐसी १००० बीमारियों को देश से मिटा सकते है ! फैसला आपके हाथ ??
ü मूर्ख शिष्य को पढ़ाने से उपदेश देने से दुष्ट स्त्री का भरण-पोषण करने से तथा दु:खी लोगों का साथ करने से विद्वान् व्यक्ति भी दु%खी होता है यानी कह सकते हैं कि चाहे कोई भी कितना ही समझदार क्यों हो किन्तु मूर्ख शिष्य को पढ़ाने पर दुष्ट स्त्री के साथ जीवन बिताने पर तथा दु%खियों-रोगियों के बीच में रहने पर विद्वान व्यक्ति भी दु:खी हो ही जाता है। साधारण आदमी की तो बात ही क्या। अत: नीति यही कहती है कि मूर्ख शिष्य को शिक्षा नहीं देनी चाहिए। दुष्ट स्त्री से सम्बन्ध नहीं रखना चाहिए बल्कि उससे दूर ही रहना चाहिए और दु:खी व्यक्तियों के बीच में नहीं रहना चाहिए। हो सकता है ये बातें किसी भी व्यक्ति को साधारण या सामान्य लग सकती हैं लेकिन यदि इन पर गंभीरता से विचार किया जाए तो यह स्पष्ट है कि शिक्षा या सीख उसी व्यक्ति को देनी चाहिए जो उसका सुपात्र हो या जिसके मन में इन शिक्षाप्रद बातों को ग्रहण करने की इच्छा हो।
ü   मूर्ख के समान ही दुष्ट स्त्री का संग करना या उसका पालन-पोषण करना भी व्यक्ति के लिए दु: का कारण बन सकता है। क्योंकि जो स्त्री अपने पति के प्रति आस्थावान हो सकी वह किसी दूसरे के लिए क्या विश्वसनीय हो सकती है ? नहीं। इसी तरह दु:खी व्यक्ति जो आत्मबल से हीन हो चुका है, निराशा में डूब चुका है उसे कौन उबार सकता है। इसलिए बुद्धिमान को चाहिए कि वह मूर्ख, दुष्ट स्त्री या दु:खी व्यक्ति (तीनों से) बचकर आचरण करे।
ü  ये चार चीजें किसी भी व्यक्ति के लिए जीती-जागती मृत्यु के समान हैं-दुश्चरित्र पत्नी, दुष्ट मित्र, जवाब देनेवाला अर्थात् मुँह लगा नौकर-इन सबका त्याग कर देना चाहिए। घर में रहनेवाले साँप को कैसे भी, मार देना चाहिए। ऐसा करने पर व्यक्ति के जीवन को हर समय खतरा बना रहता है। क्योंकि किसी भी सद्गृहस्थ के लिए उसकी पत्नी का दुष्ट होना मृत्यु के समान है। वह व्यक्ति आत्महत्या करने पर विवश हो सकता है। वह स्त्री सदैव व्यक्ति के लिए दु: का कारण बनी रहती है। इसी प्रकार नीच व्यक्ति, धूर्त अगर मित्र के रूप में आपके पास आकर बैठता है तो वह आपके लिए अहितकारी ही होगा। सेवक या नौकर भी घर के गुप्तभेद जानता है, वह भी यदि स्वामी की आज्ञा का पालन करनेवाला नहीं है तो मुसीबत का कारण हो सकता है। उससे भी हर समय सावधानी बरतनी पड़ती है, तो दुष्ट स्त्री, छली मित्र मुंहलगा नौकर कभी भी समय पड़ने पर धोखा दे सकते हैं। अत: ऐसे में पत्नी को आज्ञाकारिणी पतिव्रता होना, मित्र को समझदार विश्वसनीय होना और नौकर को स्वामी के प्रति श्रद्धावान होना चाहिए। इसके विपरीत होने पर कष्ट ही कष्ट है। इनसे व्यक्ति को बचना ही चाहिए वरना ऐसा व्यक्ति कभी भी मृत्यु का ग्रास हो सकता है।
ü  विपत्ति के समय के लिए धन की रक्षा करनी चाहिए। धन से अधिक रक्षा पत्नी की करनी चाहिए। किन्तु अपनी रक्षा का प्रश्न सम्मुख आने पर धन और पत्नी का बलिदान भी करना पड़े तो भी नहीं चूकना चाहिए। संकट, दु: में धन ही मनुष्य के काम आता है। अत: ऐसे संकट के समय में संचित धन ही काम आता है इसलिए मनुष्य को धन की रक्षा करनी चाहिए। पत्नी धन से भी पढ़कर है, अत: उसकी रक्षा धन से भी पहले करनी चाहिए। किन्तु धन एवं पत्नी से पहले तथा दोनों से बढ़कर अपनी रक्षा करनी चाहिए। अपनी रक्षा होने पर इनकी तथा अन्य सबकी भी रक्षा की जा सकती है।
ü  बुरा समय आने पर व्यक्ति का सब कुछ नष्ट हो सकता है। लक्ष्मी स्वभाव से ही चंचल होती है। इसका कोई भरोसा नहीं कि कब साथ छोड़ जाये। इसलिए धनवान व्यक्ति को भी यह नहीं समझना चाहिए कि उस पर विपत्ति आएगी ही नहीं। दु: के समय के लिए कुछ धन अवश्य बचाकर रखना चाहिए।
ü  जिस देश अथवा शहर में निम्नलिखित सुविधाएं हों, उस स्थान को अपना निवास नहीं बनाना चाहिए-जहां किसी भी व्यक्ति का सम्मान हो।जहां व्यक्ति को कोई काम मिल सके।
ü  जहां अपना कोई सगा-सम्बन्धी या परिचित व्यक्ति रहता हो।जहां विद्या प्राप्त करने के साधन हों, अर्थात् जहां स्कूल-कॉलेज या पुस्तकालय आदि हों। ऐसे स्थानों पर रहने से कोई लाभ नहीं होता। अत: इन स्थानों को छोड़ देना ही उचित होता है।