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ü मनुष्य को इस संसार में रहकर कुछ न कुछ करते रहना चाहिए, यहाँ माया जाल रुपी दुनिया है, इसलिए अपने आपको पापो से बचाने के लिए, भगवान कि पूजा करनी चाहिए, यदि ऐसा नहीं कर सकते, तो नारी से प्रेम करना चाहिए ! केवल प्रेम और योनांगो के आनन्द में एक लम्बा फासला होता है, यदि ओरत का आनन्द लेना चाहते है, तो प्यार करना सीखो !
ü नारी और धन दोनो कभी भी धोखा दे सकते है, इन दोनो के बारे में सदा होशियार रहे !
ü लड़की यदि अच्छे खानदान की हो भले ही सुन्दर न हो तो भी शादी उसी से करनी चाहिए, शादी वही पर करे जो लोग अपने बराबर के हो !
ü नारी पुरूष की अपेक्षा कही अधिक कोमल होती है, किन्तु पुरूष से अधिक भोजन करती है ! इसी कारण उसमे वाशना की आग पुरूष से अधिक होती है ! नारी फल भी है, और पत्थर भी !
ü राजा की पत्नी, गुरू की पत्नी, और सास, यह तीनो माता के समान होती है, इसलिये इनको बुरी नजर से नहीं देखना चाहिए ! इनका माँ के समान आदर कारण चाहिये ! ऐसा न करने वाले महापानी कलंकी होते है ! उन लोगो की छाया से भी बचना चाहिए !
ü जो पागल यह समझते है कि कोई सुन्दर लडकी उनके प्यार के जाल में फंस गई है, ऐसे लोग प्रेम जाल में अंधे होकर बन्दर की भांति उनके इशारो पर नाचा करते है !
ü जो ओरत दूसरो से प्यार करती है ! दूसरो की और देखती है, उस ओरत का प्यार कभी भी धोखा दे सकता है, ऐसे ओरत से सदा दूर रहना चाहिये ! क्योकि वे किसी एक की होकर नहीं रह सकती !
ü स्त्री न तो दान देकर और न ही तीर्थ यात्रा करके पवित्र हो सकती है ! पाप करने से पूर्व उन्हें यह सोच लेना चाहिए कि यह कभी भी नहीं धुलता ! नारी जब भी कभी स्वर्ग की आशा करती है तो उसे ये सोच लेना चाहिए कि उसका यह यह स्वर्ग केवल पति की सेवा से ही प्राप्त हो सकता है !
ü वह नारी उत्तम मानी जाती है जो पवित्र हो, चालक हो, पतिव्रता हो, जो अपने पति से प्रेम करती हो, ऐसे गुणों वाली ओरत जिस घर में भी होगी, वो घर सदा सुख के झूलो में झूलेगा ! उस घर में खुशियाँ ही खुशियाँ होगी ! उसी घर का भाग्यशाली घर कहा जा सकता है !
ü इस संसार को जीत लेने वाला पुरूष उस शक्ति के आगे ऐसे पिघल जाता है, जैसे आग के सामने मोम ! वह शक्ति - नारी की जवानी और उसकी सुन्दरता !
ü अत्यंत सुन्दर ओरत का शरीर - मॉस, हाड़ और उसके योवनांग है, पुरूष इसी में खो जाता है, किन्तु सत्य यह है कि - यही सबसे बड़ा नर्क है, आप इससे जितना भी बचकर रहेगे, उतना ही लाभ होगा !
ü ओरत कितनी भी बड़ी हो जाए, किन्तु वह अपने को सदा सुन्दर और जवान ही समझती रहती है, उसकी यही इच्छा होती है कि वह सदा जवान रहे ताकि पुरूष उसके पीछे - पीछे घूमता रहे !
ü ओरत के चहरे की सुन्दरता और उसके शरीर की बनावट पर ही तो पुरूष मरता है, यही कारण है कि वह एक ओरत के साथ रहते हुए भी किसी दूसरी ओरत को बुरी नजरो से देखता है !
ü मासिक धर्म के पश्यात नारी कुंवारी लड़की जैसी ही पवित्र हो जाती है पुरुष को यह सलाह दी जाती है कि वह भूलकर भी मासिक धर्म के दिनों में ओरत से सम्भोग न करे !
ü इस दुनिया में अधिकतर युद्ध, दुर्घटनाएँ केवल नारी के ही कारण हुई है, इसलिए बुद्धिजीवी को यही सलाह दी जाती है कि ये ओरत के इस माया जाल से दूर रहे !
ü जो नारी सुबह के समय अपने पति की सेवा, माँ के समान करती है, और दिन में बहन के समान प्यार देती है, और रात में वैश्या की भांती, उसे अपने शरीर का आनन्द दे, उसे ही सत्य से अच्छी और गुणवान पत्नी मानी जाती है !
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ü जो वक्त को बर्बाद करते है, वक्त उसे बर्बाद कर देता है !
ü मनुष्य अपनी द्रष्टिकोण में परिवर्तन कर, अपने जीवन को बदल सकता है
ü वास्तव में ईशवर उसी के साथ है, जो निन्दा से बचते है दुसरो के साथ नेकी करते है !
ü अवगुण नाव की पेदी में छेद के समान है, जो चाहे छोटा हो या बड़ा, एक दिन उसे डूबो देगा !
ü मानवता कि सेवा करने वाले हाथ उतने ही पवित्र होते है जितने ईशवर प्रार्थना करने वाले होठ !
- सबसे आगे निकलने वाला व्यक्ति सामान्यतया वह होता है जो कर्म और दुस्साहस के लिए इच्छुक रहता है
ü जो मित्र आपके सामने चिकनी-चुपड़ी बातें करता हो और पीठ पीछे आपके कार्य को बिगाड़ देता हो, उसे त्याग देने में ही भलाई है। वह उस बर्तन के समान है, जिसके ऊपर के हिस्से में दूध लगा है परंतु अंदर विष भरा हुआ होता है।
ü जो व्यक्ति अच्छा मित्र नहीं है उस पर तो विश्वास नहीं करना चाहिए, परंतु इसके साथ ही अच्छे मित्र के संबंद में भी पूरा विश्वास नहीं करना चाहिए, क्योंकि यदि वह नाराज हो गया तो आपके सारे भेद खोल सकता है। अत: सावधानी अत्यंत आवश्यक है।
ü बचपन में संतान को जैसी शिक्षा दी जाती है, उनका विकास उसी प्रकार होता है। इसलिए माता-पिता का कर्तव्य है कि वे उन्हें ऐसे मार्ग पर चलाएँ, जिससे उनमें उत्तम चरित्र का विकास हो क्योंकि गुणी व्यक्तियों से ही कुल की शोभा बढ़ती है।
ü अधिक लाड़ प्यार करने से बच्चों में अनेक दोष उत्पन्न हो जाते हैं। इसलिए यदि वे कोई गलत काम करते हैं तो उसे नजरअंदाज करके लाड़-प्यार करना उचित नहीं है। बच्चे को डाँटना भी आवश्यक है।
ü व्यक्ति अकेले पैदा होता है और अकेले मर जाता है;और वो अपने अच्छे और बुरे कर्मों का फल खुद ही भुगतता है; और वह अकेले ही नर्क या स्वर्ग जाता है.
ü भगवान मूर्तियों में नहीं है.आपकी अनुभूति आपका इश्वर है.आत्मा आपका मंदिर है.
ü अगर सांप जेह्रीला ना भी हो तो उसे खुद को जहरीला दिखाना चाहिए.
ü बुरे चरित्र वाले, अकारण दूसरों को हानि पहुँचाने वाले तथा अशुद्ध स्थान पर रहने वाले व्यक्ति के साथ जो पुरुष मित्रता करता है, वह शीघ्र ही नष्ट हो जाता है। मनुष्य को कुसंगति से बचना चाहिए। मनुष्य की भलाई इसी में है कि वह जितनी जल्दी हो सके, दुष्ट व्यक्ति का साथ छोड़ दे।
ü मित्रता, बराबरी वाले व्यक्तियों में ही करना ठीक रहता है। सरकारी नौकरी सर्वोत्तम होती है और अच्छे व्यापार के लिए व्यवहारकुशल होना आवश्यक है। इसी तरह सुंदर व सुशील स्त्री घर में ही शोभा देती है।
ü वेश्याएं निर्धनों के साथ नहीं रहतीं ,नागरिक दुर्बलों की संगती में नहीं रहते , और पक्षी उस पेड़ पर घोंसला नहीं बनाते जिसपे फल ना हों.
ü शिक्षा सबसे अच्छी मित्र है.एक शिक्षित व्यक्ति हर जगह सम्मान पता है.
ü किसी मूर्ख व्यक्ति के लिए किताबें उतनी ही उपयोगी हैं जितना कि एक अंधे व्यक्ति के लिए आईना.
ü कोई काम शुरू करने से पहले, स्वयम से तीन प्रश्न कीजिये – मैं ये क्यों कर रहा हूँ, इसके परिणाम क्या हो सकते हैं और क्या मैं सफल होऊंगा. और जब गहरई से सोचने पर इन प्रश्नों के संतोषजनक उत्तर मिल जायें,तभी आगे बढें
ü दुनिए की सबसे बड़ी शक्ति नौजवानी और औरत की सुन्दरता है.
ü कोई व्यक्ति अपने कार्यों से महान होता है, अपने जन्म से नहीं.
ü जब आप किसी काम की शुरुआत करें , तो असफलता से मत डरें और उस काम को ना छोड़ें. जो लोग इमानदारी से काम करते हैं वो सबसे प्रसन्न होते हैं.
ü जिस तरह वेश्या धन के समाप्त होने पर पुरुष से मुँह मोड़ लेती है। उसी तरह जब राजा शक्तिहीन हो जाता है तो प्रजा उसका साथ छोड़ देती है। इसी प्रकार वृक्षों पर रहने वाले पक्षी भी तभी तक किसी वृक्ष पर बसेरा रखते हैं, जब तक वहाँ से उन्हें फल प्राप्त होते रहते हैं। अतिथि का जब पूरा स्वागत-सत्कार कर दिया जाता है तो वह भी उस घर को छोड़ देता है।
ü सेवक को तब परखें जब वह काम ना कर रहा हो, भाई-बंधुओं (रिश्तेदार) की परख संकट के समय (किसी कठिनाई) में , मित्र को संकट में , और अपनी पत्नी की परख धन के नष्ट हो जाने पर ही होती है। (घोर विपत्ति) में.
ü ब्राह्मणों का बल विद्या है, राजाओं का बल उनकी सेना है, वैश्यों का बल उनका धन है और शूद्रों का बल दूसरों की सेवा करना है। ब्राह्मणों का कर्तव्य है कि वे विद्या ग्रहण करें। राजा का कर्तव्य है कि वे सैनिकों द्वारा अपने बल को बढ़ाते रहें। वैश्यों का कर्तव्य है कि वे व्यापार द्वारा धन बढ़ाएँ, शूद्रों का कर्तव्य श्रेष्ठ लोगों की सेवा करना है
ü मित्रता, बराबरी वाले व्यक्तियों में ही करना ठीक रहता है। सरकारी नौकरी सर्वोत्तम होती है और अच्छे व्यापार के लिए व्यवहारकुशल होना आवश्यक है। इसी तरह सुंदर व सुशील स्त्री घर में ही शोभा देती है।
ü जिस तरह वेश्या धन के समाप्त होने पर पुरुष से मुँह मोड़ लेती है। उसी तरह जब राजा शक्तिहीन हो जाता है तो प्रजा उसका साथ छोड़ देती है। इसी प्रकार वृक्षों पर रहने वाले पक्षी भी तभी तक किसी वृक्ष पर बसेरा रखते हैं, जब तक वहाँ से उन्हें फल प्राप्त होते रहते हैं। अतिथि का जब पूरा स्वागत-सत्कार कर दिया जाता है तो वह भी उस घर को छोड़ देता है।
ü नदी के किनारे स्थित वृक्षों का जीवन अनिश्चित होता है, क्योंकि नदियाँ बाढ़ के समय अपने किनारे के पेड़ों को उजाड़ देती हैं। इसी प्रकार दूसरे के घरों में रहने वाली स्त्री भी किसी समय पतन के मार्ग पर जा सकती है। इसी तरह जिस राजा के पास अच्छी सलाह देने वाले मंत्री नहीं होते, वह भी बहुत समय तक सुरक्षित नहीं रह सकता। इसमें जरा भी संदेह नहीं करना चाहिए।
ü व्यक्ति को कभी अपने मन का भेद नहीं खोलना चाहिए। उसे जो भी कार्य करना है, उसे अपने मन में रखे और पूरी तन्मयता के साथ समय आने पर उसे पूरा करना चाहिए।
ü जो मित्र आपके सामने चिकनी-चुपड़ी बातें करता हो और पीठ पीछे आपके कार्य को बिगाड़ देता हो, उसे त्याग देने में ही भलाई है। चाणक्य कहते हैं कि वह उस बर्तन के समान है, जिसके ऊपर के हिस्से में दूध लगा है परंतु अंदर विष भरा हुआ होता है।
ü जिस व्यक्ति का पुत्र उसके नियंत्रण में रहता है, जिसकी पत्नी आज्ञा के अनुसार आचरण करती है और जो व्यक्ति अपने कमाए धन से पूरी तरह संतुष्ट रहता है। ऐसे मनुष्य के लिए यह संसार ही स्वर्ग के समान है।
ü भोजन के लिए अच्छे पदार्थों का उपलब्ध होना, उन्हें पचाने की शक्ति का होना, सुंदर स्त्री के साथ संसर्ग के लिए कामशक्ति का होना, प्रचुर धन के साथ-साथ धन देने की इच्छा होना। ये सभी सुख मनुष्य को बहुत कठिनता से प्राप्त होते हैं।
ü नीच प्रवृति के लोग दूसरों के दिलों को चोट पहुंचाने वाली, उनके विश्वासों को छलनी करने वाली बातें करते हैं, दूसरों की बुराई कर खुश हो जाते हैं। मगर ऐसे लोग अपनी बड़ी-बड़ी और झूठी बातों के बुने जाल में खुद भी फंस जाते हैं। जिस तरह से रेत के टीले को अपनी बांबी समझकर सांप घुस जाता है और दम घुटने से उसकी मौत हो जाती है, उसी तरह से ऐसे लोग भी अपनी बुराइयों के बोझ तले मर जाते हैं।
ü सबसे बड़ा गुरुमंत्र : कभी भी अपने रहस्यों को किसी के साथ साझा मत करो, यह प्रवृत्ति तुम्हें बर्बाद कर देगी।
ü दोस्त और शिष्टाचार आपको वहां ले जायेंगे जहाँ धन नहीं ले जा पायेगा.
ü जिस व्यक्ति का पुत्र उसके नियंत्रण में रहता है, जिसकी पत्नी आज्ञा के अनुसार आचरण करती है और जो व्यक्ति अपने कमाए धन से पूरी तरह संतुष्ट रहता है। ऐसे मनुष्य के लिए यह संसार ही स्वर्ग के समान है।
ü जैसे ही भय आपके करीब आये , उसपर आक्रमण कर उसे नष्ट कर दीजिये.
ü जिस प्रकार एक सूखे पेड़ को अगर आग लगा दी जाये तो वह पूरा जंगल जला देता है, उसी प्रकार एक पापी पुत्र पुरे परिवार को बर्वाद कर देता है.
ü वही गृहस्थी सुखी है, जिसकी संतान उनकी आज्ञा का पालन करती है। पिता का भी कर्तव्य है कि वह पुत्रों का पालन-पोषण अच्छी तरह से करे। इसी प्रकार ऐसे व्यक्ति को मित्र नहीं कहा जा सकता है, जिस पर विश्वास नहीं किया जा सके और ऐसी पत्नी व्यर्थ है जिससे किसी प्रकार का सुख प्राप्त न हो।
ü मूर्ख शिष्य को पढ़ाने से उपदेश देने से दुष्ट स्त्री का भरण-पोषण करने से तथा दु:खी लोगों का साथ करने से विद्वान् व्यक्ति भी दु%खी होता है यानी कह सकते हैं कि चाहे कोई भी कितना ही समझदार क्यों न हो किन्तु मूर्ख शिष्य को पढ़ाने पर दुष्ट स्त्री के साथ जीवन बिताने पर तथा दु%खियों-रोगियों के बीच में रहने पर विद्वान व्यक्ति भी दु:खी हो ही जाता है। साधारण आदमी की तो बात ही क्या। अत: नीति यही कहती है कि मूर्ख शिष्य को शिक्षा नहीं देनी चाहिए। दुष्ट स्त्री से सम्बन्ध नहीं रखना चाहिए बल्कि उससे दूर ही रहना चाहिए और दु:खी व्यक्तियों के बीच में नहीं रहना चाहिए। हो सकता है ये बातें किसी भी व्यक्ति को साधारण या सामान्य लग सकती हैं लेकिन यदि इन पर गंभीरता से विचार किया जाए तो यह स्पष्ट है कि शिक्षा या सीख उसी व्यक्ति को देनी चाहिए जो उसका सुपात्र हो या जिसके मन में इन शिक्षाप्रद बातों को ग्रहण करने की इच्छा हो।
ü मूर्ख के समान ही दुष्ट स्त्री का संग करना या उसका पालन-पोषण करना भी व्यक्ति के लिए दु:ख का कारण बन सकता है। क्योंकि जो स्त्री अपने पति के प्रति आस्थावान न हो सकी वह किसी दूसरे के लिए क्या विश्वसनीय हो सकती है ? नहीं। इसी तरह दु:खी व्यक्ति जो आत्मबल से हीन हो चुका है, निराशा में डूब चुका है उसे कौन उबार सकता है। इसलिए बुद्धिमान को चाहिए कि वह मूर्ख, दुष्ट स्त्री या दु:खी व्यक्ति (तीनों से) बचकर आचरण करे।
ü ये चार चीजें किसी भी व्यक्ति के लिए जीती-जागती मृत्यु के समान हैं-दुश्चरित्र पत्नी, दुष्ट मित्र, जवाब देनेवाला अर्थात् मुँह लगा नौकर-इन सबका त्याग कर देना चाहिए। घर में रहनेवाले साँप को कैसे भी, मार देना चाहिए। ऐसा न करने पर व्यक्ति के जीवन को हर समय खतरा बना रहता है। क्योंकि किसी भी सद्गृहस्थ के लिए उसकी पत्नी का दुष्ट होना मृत्यु के समान है। वह व्यक्ति आत्महत्या करने पर विवश हो सकता है। वह स्त्री सदैव व्यक्ति के लिए दु:ख का कारण बनी रहती है। इसी प्रकार नीच व्यक्ति, धूर्त अगर मित्र के रूप में आपके पास आकर बैठता है तो वह आपके लिए अहितकारी ही होगा। सेवक या नौकर भी घर के गुप्तभेद जानता है, वह भी यदि स्वामी की आज्ञा का पालन करनेवाला नहीं है तो मुसीबत का कारण हो सकता है। उससे भी हर समय सावधानी बरतनी पड़ती है, तो दुष्ट स्त्री, छली मित्र व मुंहलगा नौकर कभी भी समय पड़ने पर धोखा दे सकते हैं। अत: ऐसे में पत्नी को आज्ञाकारिणी व पतिव्रता होना, मित्र को समझदार व विश्वसनीय होना और नौकर को स्वामी के प्रति श्रद्धावान होना चाहिए। इसके विपरीत होने पर कष्ट ही कष्ट है। इनसे व्यक्ति को बचना ही चाहिए वरना ऐसा व्यक्ति कभी भी मृत्यु का ग्रास हो सकता है।
ü विपत्ति के समय के लिए धन की रक्षा करनी चाहिए। धन से अधिक रक्षा पत्नी की करनी चाहिए। किन्तु अपनी रक्षा का प्रश्न सम्मुख आने पर धन और पत्नी का बलिदान भी करना पड़े तो भी नहीं चूकना चाहिए। संकट, दु:ख में धन ही मनुष्य के काम आता है। अत: ऐसे संकट के समय में संचित धन ही काम आता है इसलिए मनुष्य को धन की रक्षा करनी चाहिए। पत्नी धन से भी पढ़कर है, अत: उसकी रक्षा धन से भी पहले करनी चाहिए। किन्तु धन एवं पत्नी से पहले तथा दोनों से बढ़कर अपनी रक्षा करनी चाहिए। अपनी रक्षा होने पर इनकी तथा अन्य सबकी भी रक्षा की जा सकती है।
ü बुरा समय आने पर व्यक्ति का सब कुछ नष्ट हो सकता है। लक्ष्मी स्वभाव से ही चंचल होती है। इसका कोई भरोसा नहीं कि कब साथ छोड़ जाये। इसलिए धनवान व्यक्ति को भी यह नहीं समझना चाहिए कि उस पर विपत्ति आएगी ही नहीं। दु:ख के समय के लिए कुछ धन अवश्य बचाकर रखना चाहिए।
ü जिस देश अथवा शहर में निम्नलिखित सुविधाएं न हों, उस स्थान को अपना निवास नहीं बनाना चाहिए-जहां किसी भी व्यक्ति का सम्मान न हो।जहां व्यक्ति को कोई काम न मिल सके।
जहां अपना कोई सगा-सम्बन्धी या परिचित व्यक्ति न रहता हो।जहां विद्या प्राप्त करने के साधन न हों, अर्थात् जहां स्कूल-कॉलेज या पुस्तकालय आदि न हों। ऐसे स्थानों पर रहने से कोई लाभ नहीं होता। अत: इन स्थानों को छोड़ देना ही उचित होता है।
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