CPU का पूरा नाम Central Processing Unit है CPU कंप्यूटर का कंट्रोल सेंटर होता है इसके अंदर एक चिप की तरह लगा होता है इसे processor कहते हैं और processor का कंप्यूटर का दिमाग भी कहा जाता है क्योंकि processor कंप्यूटर के सभी कंपोनेंट्स को कंट्रोल करता है processor एक छोटी सी इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस जैसी होती है जो कंप्यूटर के मदरबोर्ड में लगी होती है और कंप्यूटर के कंप्यूटर की सारी प्रोसेसिंग का काम processor करता है ा
Tuesday, 22 May 2018
Computer में F1 से लेकर F12 तक Key
Computer में F1 से लेकर F12 तक Key
कीबोर्ड आप सबसे ऊपर की लाइन में बटन देखते हैं F1 से लेकर F12 तक यह क्या काम आते हैं। इन key को आप Function Key भी कह सकते है F1 Key का इस्तेमाल किसी भी सॉफ्टवेर के Help और Support Center ओपन करने के लिए किया जाता है।जब भी आप किसी सॉफ्टवेयर के खोलने के बाद उसमें F1 Key दबाते हैं तो आप उसके बारे में और जानकारी पा सकते हैं।
F2 Key किसी भी फोल्डर पर क्लिक करके अगर आप तो F2 दबाते हैं तो आपक आप उसका नाम बदल सकते हैं। इसके लिए आपको Right क्लिक करके Rename पर क्लिक करने की जरूरत नहीं होगी आप सीधे F2 बटन दबाएं और आप अपने फोंल्डर का नाम आसानी से चेंज कर सकते है।
F3 Key सर्च करने के लिए इस्तेमाल की जाती है जैसे आप किसी भी ब्राउजर में सर्च करते है। F3 बटन प्रैस करके Enter बटन प्रैस करते हैं तो यह सीधा विंडो के सर्च बार में खुल जाएगा और इसके बाद आप यहाँ पर फाइल सर्च कर सकते हैं
F4 Key इस Key का इस्तेमाल अकेले नही होता है इसके लिए आपको ctrl और Alt की का इस्तेमाल करना होता है किसी भी सॉफ्टवेर को बंद करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है इसका इस्तेमाल आप अपना कम्प्युटर बंद करने के लिए भी कर सकते है।
F5 Key इसका इस्तेमाल बहुत ज्यादा होता है और हर किसी को इसके इस्तेमाल का पता होता है। इसका ज़्यादातर इस्तेमाल Desktop को Refresh करने के लिए किया जाता है। इसके अलावा आप इससे अपने इंटरनेट के पेज को Reload कर सकते है। व पॉवर पॉईन्ट प्रजेन्टेशन मे स्लाईड शो करने के लिए किया जाता हैंा
F10 Key इस Key को दो तरह से इस्तेमाल किया जा सकता है। जैसे अगर आप अभी अपने browser में इसको प्रैस करते है तो इससे आपका browser का File मेनू automatic सिलैक्ट हो जाएगा। इसके अलावा अगर आप Shift+F10 का इस्तेमाल करते है इससे आपका Right मेनू ओपन हो जाएगा।
F11 Keyइस Key का इस्तेमाल ज़्यादातर browser और Microsoft कई तरह के सॉफ्टवेर को Full Screen मोड़ ऑन करने करने के लिए भी किया जाता है। आप इसको कई तरह के video player मे भी इस्तेमाल कर सकते है। इसका काम सिर्फ Full Screen करने के लिए किया जाता। हैा
WWW वर्ल्ड वाइड वेब का आविष्कार
WWW
वर्ल्ड वाइड वेब का आविष्कार
Www का
पूरा नाम (World Wide Web)
वर्ल्ड वाइड वेब है और यह एक डेटा बेस है और वर्ल्ड
वाइड वेब एक जानकारियों का भण्डार है आप कह सकते है की यह जानकारी की
दुनिया है इसमें लगभग सभी जानकारी मिलती है Www के अंदर जानकारी हाइपर टेक्स्ट या
लिंक (HYPER TEXT OR
LINK) के अंदर होती है और यह इंटरनेट के
माध्यम से काम करता है वर्ल्ड वाइड वेब और इन्टरनेट दोनों एक दुसरे पर निर्भर करते
है क्योकि इन्टरनेट का इस्तेमाल करके ही वर्ल्ड वाइड वेब से जानकारी ले
सकते है
वर्ल्ड
वाइड वेब इन्टरनेट से दुनिया भर को कंप्यूटर से जोड़े रखता है और वर्ल्ड
वाइड वेब , वेब
ब्राउज़र और वेब सर्वर जैसे HTML
, HTTP पर काम करता है जैसे ;जब भी आप कोई वेबसाइट इंटरनेट में
ओपन करते है या फिर किसी वेब ब्राउज़र में वेबसाइट को ओपन करते है तो वेबसाइट
की एड्रेस पहले वर्ल्ड वाइड वेब से
ही शुरू हुआ मिलता
है और वर्ल्ड
वाइड वेब में हम वेब ब्राउज़र से ही पहुच सकते है और वेब ब्राउज़र एक प्रकार
का सॉफ्टवेयर होता है, जो
की वर्ल्ड वाइड वेब या किसी सर्वर पर उपलब्ध जानकारियों को देखने तथा अन्य
इन्टरनेट सुविधाओं के प्रयोग करने के लिए उपलब्ध है
वर्ल्ड वाइड वेब का
आविष्कार Tim Berners – Lee और Robert Cailliau ने सन , 1989 में की थी और यह पूरी तरह से सन
, 6 अगस्त 1991 में शुरु किया गया था इस दिन आम
जनता के लिए वर्ल्ड वाइड वेब शुरू हो गया था और लोग इसका अच्छे से इस्तेमाल करने
लगे थे पर लोगों को शुरु-शुरु में इसे दिक्कत का सामना करना पड़ा क्योंकि
शुरू में न ही तो अच्छी तरह वह पेज तैयार किए गए थे और और ना ही अच्छे वेब
ब्राउज़र थे लेकिन पहली बार इन्टरनेट का प्रदर्शन क्रिसमस के दिन सन ,1990 में किया गया था |Saturday, 19 May 2018
gyan ki bat
उस व्यक्ति ने धरती पर ही स्वर्ग को पा लिया :
१. जिसका पुत्र आज्ञांकारी है,
२. जिसकी पत्नी उसकी इच्छा के अनुरूप व्यव्हार करती है,
३. जिसे अपने धन पर संतोष है।
पुत्र वही है जो पिता का कहना मानता हो, पिता वही है जो पुत्रों का पालन-पोषण करे, मित्र वही है जिस पर आप विश्वास कर सकते हों और पत्नी वही है जिससे सुख प्राप्त हो।
ऐसे लोगों से बचे जो आपके मुह पर तो मीठी बातें करते हैं, लेकिन आपके पीठ पीछे आपको बर्बाद करने की योजना बनाते है, ऐसा करने वाले तो उस विष के घड़े के समान है जिसकी उपरी सतह दूध से भरी है।
एक बुरे मित्र पर तो कभी विश्वास ना करे। एक अच्छे मित्र पर भी विश्वास ना करें। क्यूंकि यदि ऐसे लोग आपसे रुष्ट होते है तो आप के सभी राज से पर्दा खोल देंगे।
मन में सोंचे हुए कार्य को किसी के सामने प्रकट न करें बल्कि मनन पूर्वक उसकी सुरक्षा करते हुए उसे कार्य में परिणत कर दें।
मुर्खता दुखदायी है, जवानी भी दुखदायी है,लेकिन इन सबसे कहीं ज्यादा दुखदायी किसी दुसरे के घर जाकर उसका अहसान लेना है।
नदी के किनारे वाले वृक्ष, दुसरे व्यक्ति के घर मे जाने अथवा रहने वाली स्त्री एवं बिना मंत्रियों का राजा - ये सब निश्चय ही शीघ्र नस्ट हो जाते हैं।
वेश्या को निर्धन व्यक्ति को त्याग देना चाहिए, प्रजा को पराजित राजा को त्याग देना चाहिए, पक्षियों को फलरहित वृक्ष त्याग देना चाहिए एवं अतिथियों को भोजन करने के पश्चात् मेजबान के घर से निकल देना चाहिए।
Friday, 18 May 2018
इन 6 लोगों को नींद से तुरंत जगा देना चाहिए
इन 6 लोगों को नींद से तुरंत जगा देना चाहिए
1. विद्यार्थी
किसी भी व्यक्ति के जीवन शिक्षा का बहुत अधिक महत्व है। इसी वजह से शिक्षा
ग्रहण करते समय अधिक से अधिक समय अभ्यास ही करना चाहिए। अत: यदि कोई
विद्यार्थी परीक्षा के समय सो रहा है तो उसे तुरंत उठा देना चाहिए ताकि वह
अभ्यास ठीक से कर सके। विद्यार्थी सोता रहेगा तो वह परीक्षा में उत्तीर्ण
नहीं हो सकता है।
2. नौकर
यदि कोई नौकर काम के समय सो रहा हो तो उसे तुरंत जगा देना चाहिए, अन्यथा कार्य पूर्ण नहीं हो सकेगा।
3. राहगीर
यदि कोई राहगीर या यात्री रास्ते में सोता दिखाई दे तो उसे भी उठा देना
चाहिए, अन्यथा उसका सामान चोरी होने का भय रहता है। यात्री को सोता देख कोई
चोर उसके धन को चुरा सकता है या अन्य कोई हानि पहुंचा सकता है। यात्री
सोता रहेगा तो वह अपनी यात्रा पूर्ण नहीं कर सकेगा।
4. भूखा व्यक्ति
यदि कोई व्यक्ति भूखा है तो उसे जगा देना चाहिए और उसे भोजन देना चाहिए।
भूखा व्यक्ति सोता रहेगा तो उसे शारीरिक कष्ट झेलना पड़ सकते हैं, वह बीमार
हो सकता है।
5. डरा हुआ व्यक्ति
यदि कोई व्यक्ति नींद में डर रहा है तो उसे भी तुरंत उठा देना चाहिए ताकि उसका भयानक सपना टूट जाए और उसे शांति मिले।
6. चौकीदार
किसी भण्डार गृह का रक्षक या कोई चौकीदार अपने कर्तव्य के समय सोते दिखे तो
इन्हें भी तुरंत जगा देना चाहिए। भण्डार गृह का रक्षक या चौकीदार के सोने
पर चोरी होने का भय बना रहता है। साथ ही, जन हानि होने की भी संभावनाएं
रहती हैं।
किसी को नींद से जगाते समय ध्यान रखें ये बातें
किसी को नींद से जगाते समय ध्यान रखें ये बातें
1. मूर्ख व्यक्ति
यदि कोई मूर्ख व्यक्ति सो रहा है तो उसे सोने देना चाहिए। जगाने का प्रयास भी नहीं करना चाहिए। यदि मूर्ख व्यक्ति जाग जाएगा तो हमारे लिए परेशानियां बढ़ सकती हैं। बुद्धिहीन व्यक्ति बेकार की बातों से हमारा समय नष्ट करता है और वे कभी-कभी बिना विचारे ही ऐसे काम देते हैं, जिनसे हमें किसी परेशानी का सामना करना पड़ सकता है। अत: इन्हें जगाना नहीं चाहिए। जब तक ये सोते रहेंगे, हम सुखी रहेंगे।
2. सांप
यदि कहीं कोई सांप सो रहा हो तो उसे छेड़ना नहीं चाहिए। सभी जानते हैं कि सांप को छेड़ने पर मृत्यु का संकट उत्पन्न हो सकता है। अत: सोते हुए सांप को बिना छेड़े ही वहां से निकल जाना चाहिए।
3. राजा या मालिक
यदि कोई राजा या बड़ा अधिकारी, मंत्री या कोई वरिष्ठ सो रहा हो तो उसे जगाने का प्रयास नहीं करना चाहिए। ऐसे लोगों को जगाने पर वे नाराज हो सकते हैं। पुराने समय में तो राजा को अकारण जगाना भयंकर अपराध माना जाता था, इस अपराध का दंड बहुत भयानक होता था।
4. शेर
यदि कहीं सोता हुआ शेर दिखाई दे तो उसे भी छेड़ने का प्रयास नहीं करना चाहिए। शेर इंसानों को देखते ही झपट पड़ते हैं। अत: सोते हुए शेर को जगाए बिना ही वहां से निकल जाना चाहिए।
5. छोटा बच्चा
यदि कोई छोटा बच्चा सो रहा हो तो उसे भी जगाना नहीं चाहिए। छोटे बच्चे जागने के तुरंत बाद रोते हैं, जिन्हें चुप कराना सिर्फ उनकी मां के लिए ही संभव है। अन्य कोई व्यक्ति रोते हुए बच्चे को आसानी से शांत नहीं करवा सकता है। छोटे बच्चे के लिए सोना बहुत जरूरी होता है, अत: उसके स्वास्थ्य की दृष्टि से भी उसे जगाना नहीं चाहिए।
6. पराया कुत्ता
यदि हम किसी व्यक्ति के घर गए हैं और वहां कोई कुत्ता है तो उसे छेड़ना नहीं चाहिए। यदि वह सो रहा है तो उसे सोने ही दें, क्योंकि कुत्ते अजनबी लोगों को देखकर काटने का प्रयास करते हैं।
7. कोई हिंसक पशु
यदि किसी स्थान पर कोई हिंसक पशु सो रहा है तो उसे भी छेड़ने का प्रयास नहीं करना चाहिए। हिंसक पशु कभी भी इंसान पर हमला कर सकता है, जिसे संभाल पाना बहुत मुश्किल होता है।
सफलता चाहिए तो ध्यान रखें ये 7 बातें
सफलता चाहिए तो ध्यान रखें ये 7 बातें
अर्थ- 1. उद्योग, 2. संयम, 3. दक्षता, 4. सावधानी, 5. धैर्य, 6. स्मृति और 7. सोच-विचार कर कार्यारम्भ करना– इन्हें उन्नति का मूल मंत्र समझिए।
1. उद्योग यानी परिश्रम व प्रयास
किसी भी क्षेत्र में सफलता पाने के लिए लगातार परिश्रम व प्रयास करते रहना जरूरी है। परिश्रम के अभाव में सफलता नहीं मिलती। कुछ लोग सफल होने के लिए शार्ट कट अपनाते हैं। भविष्य में इन्हें अपनी गलती का अहसास होता है, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। असल में सफलता के लिए संकल्प, कर्म के साथ उद्यम यानी परिश्रम की भावना के तय पैमानों को अपनाए बिना कामयाबी की मंजिल को छूना व उस पर कायम रहना मुश्किल हैi
2. संयम
सफलता के लिए संयम भी बहुत जरूरी है। देखने में आता है कि छोटी सी सफलता मिलने पर ही लोग मन पर संयम नहीं रख पाते और बड़ी-बड़ी बातें करने लगते हैं। इस उतावलेपन में वह अपना ही नुकसान कर बैठते हैं। इसलिए यदि आप सफलता पाना चाहते हैं तो मन पर संयम रखना बहुत जरूरी है।
3. दक्षता
सफलता के लिए दक्षता यानी किसी भी काम में कुशलता होना बहुत जरूरी है। कुछ लोग जल्दी सफलता पाने के लिए दक्षता के बिना ही प्रयास शुरू कर देते हैं। परिणाम स्वरूप सफलता मिलना तो दूर वह लक्ष्य तक पहुंच ही नहीं पाते। अतः सफलता पाने के लिए किसी भी कार्य या कला में महारत होना बहुत ही जरूरी है।
4. सावधानी
सफलता पाने की जिद में हम ये बात भूल ही जाते हैं कि हमें किन बातों को नजरअंदाज करना है। यही सावधानी है। यदि हम सफलता पाने के मार्ग में सावधानियों को देखेंगे तो आगे जाकर यही गलतियां हमारे रास्ते का कांटा बन सकती हैं। अतः सफलता के मार्ग पर चलते हुए सावधानियों को भी ध्यान रखनी चाहिए।
5. धैर्य
सफलता पाने के लिए मन में धैर्य भी होना चाहिए। जल्दबाजी में की गई आपकी एक छोटी सी गलती आपका सपना तोड़ सकती है। तमाम कोशिशों के बाद भी मनचाहे परिणाम न मिलने या अपेक्षा पूरा न होने पर लक्ष्य से न भटकें, न उसे छोड़ने का विचार करें। बल्कि मजबूत संकल्प और दोगुनी मेहनत के साथ उसे पाने में जुट जाएं।
6. स्मृति
स्मृति यानी याददाश्त। सफलता पाने के लिए स्मृति यानी याददाश्त का तेज होना भी जरूरी है। ये गुण भी सभी लोगों में नहीं होता। आपका दिमाग जितना तेज होगा, याददाश्त भी उतनी पैनी होगी।
7. सोच-विचार कर कार्यारम्भ करना
कोई भी काम शुरू करने से पहले उसके विषय में पूरी तरह से सोच-विचार अवश्य करनी चाहिए। बिना सोच-विचार शुरू किए गए कार्य में सफलता मिलने में संदेह रहता है या आगे जाकर परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है।
10 लोगों से रहना चाहिए दूर, इन्हें नहीं होती अच्छे-बुरे की पहचान
10 लोगों से रहना चाहिए दूर, इन्हें नहीं होती अच्छे-बुरे की पहचान
1. जिसने नशा किया हो
जिस व्यक्ति ने नशा किया हुआ हो, उससे दूर रहने में ही भलाई है। नशे में
व्यक्ति को अच्छे-बुरे का ज्ञान नहीं रहता और कई बार वह ऐसे काम भी कर
देता है, जो उसे नहीं करना चाहिए। नशे में किसी
व्यक्ति द्वारा किए गए गलत कामों का दंड उसके साथ रहने वालों को भी भुगतना
पड़ सकता है। इसलिए ऐसे व्यक्ति से दूर रहना ही अच्छा है। नहीं तो किसी
समस्या का सामना करना पड़ सकता है।
2. असावधान इंसान
असावधान व्यक्ति को भी अच्छे-बुरे का ध्यान नहीं रहता, इसलिए उसके साथ भी
नहीं रहना चाहिए। उसकी लापरवाही के कारण हमें भी नुकसान हो सकता है। जैसे
किसी व्यक्ति का पुराना विवाद चल रहा हो बावजूद इसके वह सावधान नहीं रहता
तो मौका उठाकर दुश्मन उस पर हमला कर सकते हैं। असावधान रहने पर उसे तो
नुकसान उठाना ही पड़ेगा।
यदि हम भी ऐसे व्यक्ति के साथ रहेंगे तो बिना कारण हमें भी शारीरिक चोट पहुंच सकती है। वाहन चलाते समय या कोई जोखिम भरा काम करते समय किसी व्यक्ति की जरा सी लापरवाही उसकी व उसके साथ रहने वाले व्यक्ति की भी जान ले सकती है। इसलिए जो व्यक्ति असावधान यानी लापरवाह हो, उसके साथ न ही रहें तो बेहतर रहेगा।
यदि हम भी ऐसे व्यक्ति के साथ रहेंगे तो बिना कारण हमें भी शारीरिक चोट पहुंच सकती है। वाहन चलाते समय या कोई जोखिम भरा काम करते समय किसी व्यक्ति की जरा सी लापरवाही उसकी व उसके साथ रहने वाले व्यक्ति की भी जान ले सकती है। इसलिए जो व्यक्ति असावधान यानी लापरवाह हो, उसके साथ न ही रहें तो बेहतर रहेगा।
3. पागल मनुष्य
जिस व्यक्ति का मानसिक संतुलन खराब हो, उसे सही-गलत या अच्छे बुरे का ज्ञान
नहीं होता। वह तो बिना कारण कुछ भी करता रहता है। ऐसे में कई बार वह ऐसे
काम भी कर देता है, जो उसे नहीं करना चाहिए। पागल व्यक्ति बिना कारण किसी
पर हमला कर सकता है या सम्मान करने योग्य व्यक्ति का अपमान कर सकता है।
ऐसी स्थिति में उसे लोगों के गुस्से का सामना करना पड़ता है। पागल व्यक्ति
को तो लोगों की पिटाई का अहसास भी नहीं होता, लेकिन कई बार पागल के साथ
रहने वालों को अकारण ही लोगों के गुस्से का शिकार होना पड़ता है। इसलिए जिस
व्यक्ति का मानसिक संतुलन ठीक नहीं हो, उसके साथ भी नहीं रहना चाहिए।
4. थका हुआ व्यक्ति
जिस व्यक्ति ने सारी रात कमरतोड़ मेहनत की हो और वह थक कर चूर हो चुका हो, ऐसी व्यक्ति को भी अच्छे-बुरे का ज्ञान नहीं रहता। थका हुआ व्यक्ति किसी से विवाद नहीं करता, वह तो बस आराम करना चाहता है। अगर उसके आराम में उसे रुकावट आती है तो वह सही-गलत का निर्णय किए बिना ही कुछ ऐसा कर सकता है, जो उसे नहीं करना चाहिए। इस स्थिति में उसे तो नुकसान उठाना ही पड़ेगा, लेकिन उसके साथ यदि कोई है तो वह भी संकट में फंस सकता है। इसलिए ऐसे व्यक्ति से दूर रहने में ही भलाई है।
5. क्रोधी व्यक्ति
जिस व्यक्ति को छोटी-छोटी बातों पर बहुत गुस्सा आता हो, उसे भी धर्म-अधर्म
का ज्ञान नहीं रहता, इसलिए ऐसे लोगों से भी दूर ही रहना चाहिए। जिस व्यक्ति
का स्वभाव क्रोध वाला हो, वह छोटी सी बात पर भी किसी पर हमला कर सकता है
या ऐसा कुछ कर सकता है, जिसके कारण आगे जाकर पछताना पड़े। ऐसे लोग बहुत ही
दुःसाहसी होते हैं, क्रोध आने पर ये किसी का भी बुरा कर बैठते हैं।
हालांकि आगे जाकर इन्हें भी अनेक मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। ऐसे
लोगों के साथ रहने वाले लोग भी हमेशा डरे हुए रहते हैं। क्योंकि वे जानते
हैं कि क्रोधी व्यक्ति के कारण हम भी मुसीबत में फंस सकते हैं। इसलिए
क्रोधी व्यक्ति से दूर ही रहना चाहिए।
6. भूखा व्यक्ति
भूख से तपड़ते हुए मनुष्य को भी धर्म-अधर्म का ज्ञान नहीं रहता। वह अपनी भूख शांत करने के लिए सही-गलत का निर्णय नहीं ले पाता और कुछ ऐसा कर सकता है, जो उसे नहीं करना चाहिए। भूखा व्यक्ति चोरी, डकैती या लूट जैसी घटना को भी अंजाम दे सकता है। भले ही उसका स्वभाव अच्छा हो, लेकिन भूख के कारण वह ये बुरे काम कर सकता है। इसलिए भूखे व्यक्ति से भी मेल-जोल नहीं रखना चाहिए। इसके कारण भी आप किसी मुसीबत में फंस सकते हैं।
7. जल्दबाजी में काम करने वाला व्यक्ति
जो व्यक्ति हर काम जल्दबाजी में करता है वह कभी न कभी कुछ न कुछ गलत जरूर
कर बैठता है। जल्दबाजी में उसे अच्छे-बुरे का ध्यान नहीं रहता, वह सिर्फ
जल्दी से अपना काम निपटाना चाहता है। अपना काम जल्दी निपटाने के लिए ऐसे
लोग कोई शार्टकट तरीका अपनाते हैं, जिसके कारण बाद में इन्हें पछताना पड़ता
है।
कई बार ऐसे लोगों से जल्दबाजी में किसी का बुरा भी हो जाता है। ऐसे लोग
स्वभाव के बुरे नहीं होते, लेकिन जल्दबाजी के कारण कई बार इन्हें लोगों के
गुस्से का शिकार होना पड़ता है। इसलिए ऐसे लोग जो हर काम जल्दबाजी में करते
हैं, उनसे दूर रहना चाहिए।
8. लोभी व्यक्ति
लोभी यानी लालची व्यक्ति। हम बचपन से ही सुनते आ रहे हैं कि लालच इंसान का सबसे बड़ा दुश्मन है। लालची इंसान अपने निजी स्वार्थ के लिए किसी के साथ भी धोखा कर सकते हैं। ऐसे लोग धर्म-अधर्म के बारे में नहीं सोचते। ये लोग अपने परिवार, रिश्तेदार, दोस्त या और किसी के साथ भी बुरा करने से नहीं हिचकते। विपरीत समय आने पर ये अपने साथ रहने वाले लोगों को भी फंसा सकते हैं। इसलिए लालची लोगों से दूर रहने में ही भलाई है।
9. भयभीत यानी डरा हुआ व्यक्ति
डरे हुए इंसान को रस्सी भी सांप नजर आती है। उसे यही लगता है कि कहीं से कोई उसका नुकसान न कर दे। ऐसा व्यक्ति सही-गलत में भी फर्क नहीं कर सकता। हल्की हवा भी उसे तुफान की तरह लगती है। डरा हुआ व्यक्ति सज्जन होने पर भी जाने-अनजाने में किसी को चोट पहुंचा सकता है। वह अपने साथ रहने वाले व्यक्ति को भी शक की नजर से देखता है। खुद की जान खतरे में देख वह हिंसक भी हो सकता है। इसलिए भयभीत व्यक्ति के साथ भी नहीं रहना चाहिए क्योंकि उसकी गलती आपके लिए भी संकट पैदा कर सकती है।
10. कामी व्यक्ति
जब किसी व्यक्ति पर काम हावी होता है तो वह सही-गलत व अच्छा-बुरा सब भूल जाता है। कामी व्यक्ति अपनी तृप्ति के लिए किसी के साथ भी बुरा व्यवहार कर बैठता है। ऐसे व्यक्ति के साथ रहने वालों को भी कई बार अपमान का सामना करना पड़ सकता है। लगातार ऐसे व्यक्ति के संपर्क में रहने से लगातार समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इसलिए कामी व्यक्ति से दूर ही रहना चाहिए।
स्त्री हो या पुरुष, इन चार कारणों से उड़ जाती है नींद
स्त्री हो या पुरुष, इन चार कारणों से उड़ जाती है नींद
पहली बात-
यदि किसी व्यक्ति के मन में कामभाव जाग गया हो तो उसे नींद नहीं आती है। जब तक कामी व्यक्ति की काम भावना तृप्त नहीं हो जाती है, तब तक वह सो नहीं सकता है। कामभावना व्यक्ति के मन को अशांत कर देती है और कामी किसी भी कार्य को ठीक से नहीं कर पाता है। यह भावना स्त्री और पुरुष दोनों की नींद उड़ा देती है।
यदि किसी व्यक्ति का सब कुछ छिन लिया गया हो तो उसकी रातों की नींद उड़ जाती है। ऐसा इंसान न तो चैन से जी पाता है और ना ही सो पाता है। इस परिस्थिति में व्यक्ति हर पल छिनी हुई वस्तुओं को पुन: पाने की योजनाएं बनाते रहता है। जब तक वह अपनी वस्तुएं पुन: पा नहीं लेता है, तब तक उसे नींद नहीं आती है।
पति के लिए अच्छी नहीं होती हैं पत्नी की ये बातें
पति के लिए अच्छी नहीं होती हैं पत्नी की ये बातें
बुरे चरित्र वाली स्त्री का शत्रु है उसका पति
यदि कोई स्त्री बुरे चरित्र वाली है, अधार्मिक कर्म करने वाली है, पराए पुरुषों के प्रति आकर्षित होने वाली है तो उसका पति ही सबसे शत्रु होता है। अधार्मिक कर्म वाली स्त्री को पति ऐसे काम करने से रोकता है तो वह उसे शत्रु समझने लगती है। यदि पति या पत्नी, दोनों में से कोई भी एक बुराइयों से ग्रसित है तो दूसरे को भी इसके बुरे परिणाम झेलना पड़ते हैं। पत्नी की गलतियों की सजा पति को भुगतनी पड़ती है और पति की गलतियों की सजा पत्नी को। इसी वजह से वैवाहिक जीवन में पति और पत्नी, दोनों को समझदारी के साथ जीवन व्यतीत करना चाहिए।
लोभी का शत्रु है याचक यानी मांगने वाला
जो लोग जड़ बुद्धि होते हैं यानी मूर्ख होते हैं, वे ज्ञानी लोगों को शत्रु मानते हैं। मूर्ख व्यक्ति के सामने यदि कोई उपदेश देता है तो वे ज्ञानी को ऐसे देखते हैं, जैसे सबसे बड़ा शत्रु हो। ज्ञान की बातें मूर्ख व्यक्ति को चूभती हैं, क्योंकि वह इन बातों पर अमल नहीं कर सकता है। मूर्ख का स्वभाव उसे ज्ञान से दूर रखता है।
चोर का शत्रु है चंद्रमा
चोर अपना काम रात के अंधेरे में ही करते हैं, क्योंकि अंधकार में उन्हें कोई पहचान नहीं पाता है। अंधेरे में चांद उन्हें शत्रु के समान दिखाई देता है, क्योंकि चंद्रमा की चांदनी से अंधकार दूर हो जाता है। चोर चांदनी रात में भी आसानी से चेारी नहीं कर पाते हैं, इसी वजह से वे चंद्रमा को ही शत्रु मानते हैं।
हमें उस जगह रहना चाहिए जहां हों ये पांच बातें
हमें उस जगह रहना चाहिए जहां हों ये पांच बातें
प्रथम स्थान जहाँ कोई धनी रहता हो
जहाँ कोई धनी रहता हो, क्योंकि जिस स्थान कोई धनी हो, वहां व्यवसाय में
बढ़ोतरी होती है। धनी व्यक्ति के आसपास रहने वाले लोगों को भी रोजगार
प्राप्त होने की संभावनाएं रहती है।
दूसरा स्थान वह जहाँ कोई ज्ञानी रहता हो
जहाँ कोई ज्ञानी रहता हो, क्योंकि जिस स्थान पर कोई ज्ञानी, वेद जानने वाला व्यक्ति हो, वहां रहने से धर्म लाभ प्राप्त होता है। हमारा ध्यान पाप की ओर नहीं बढ़ता है।
तीसरा स्थान वह जहाँ कोई शासकीय अधिकारी रहता हो
जहाँ कोई शासकीय अधिकारी रहता हो, क्योंकि जहां राजा या शासकीय व्यवस्था से संबंधित व्यक्ति रहता है, वहां रहने से हमें सभी शासन की योजनाओं का लाभ प्राप्त होता है।
चौथा स्थान वह जहाँ नदी बहती हो
जहाँ आस पास कोई नदी बहती हो, क्योंकि जिस स्थान पर नदी बहती हो, जहां पानी प्रचूर मात्रा में वहां रहने से हमें समस्त प्राकृतिक वस्तुएं और लाभ प्राप्त होते हैं।
पांचवा स्थान वह जहाँ वैद्य रहता हो
जहाँ कोई वैद्य रहता हो, क्योंकि जिस स्थान पर वैद्य हो, वहां रहने से हमें बीमारियों से तुरंत मुक्ति मिल जाती है।
जब हो जाए ऐसी 4 बातें तो तुरंत भाग जाना चाहिए
जब हो जाए ऐसी 4 बातें तो तुरंत भाग जाना चाहिए
1. यदि किसी स्थान पर दंगा या उपद्रव हो जाता है तो उस स्थान से तुरंत भाग जाना चाहिए। यदि हम दंगा क्षेत्र में खड़े रहेंगे तो उपद्रवियों की हिंसा का शिकार हो सकते हैं। साथ ही, शासन-प्रसाशन द्वारा उपद्रवियों के खिलाफ की जाने वाली कार्यवाही में भी फंस सकते हैं। अत: ऐसे स्थान से तुरंत भाग निकलना चाहिए।
2. यदि हमारे राज्य पर किसी दूसरे राजा ने आक्रमण कर दिया है और हमारी सेना की हार तय हो गई है तो ऐसे राज्य से भाग जाना चाहिए। अन्यथा शेष पूरा जीवन दूसरे राजा के अधीन रहना पड़ेगा या हमारे प्राणों का संकट भी खड़ा हो सकता है।
यदि हमारा कोई शत्रु है और वह हम पर पूरे बल के साथ एकाएक हमला कर देता
है तो हमें उस स्थान से तुरंत भाग निकलना चाहिए। शत्रु जब भी वार करेगा तो
वह पूरी तैयारी और पूरे बल के साथ ही वार करेगा, ऐसे में हमें सबसे पहले
अपने प्राणों की रक्षा करनी चाहिए। प्राण रहेंगे तो शत्रुओं से बाद में भी
निपटा जा सकता है।
3. यदि हमारे क्षेत्र में अकाल पड़ गया हो और खाने-पीने, रहने के संसाधन समाप्त हो गए हों तो ऐसे स्थान से तुरंत भाग जाना चाहिए। यदि हम अकाल वाले स्थान पर रहेंगे तो निश्चित ही प्राणों का संकट खड़ा हो जाएगा। खान-पीने की चीजों के बिना अधिक दिन जीवित रह पाना असंभव है। अत: अकाल वाले स्थान को छोड़कर किसी उपयुक्त पर चले जाना चाहिए।
4. यदि हमारे पास कोई नीच व्यक्ति आ जाए तो उस स्थान से किसी भी प्रकार भाग निकलना चाहिए। नीच व्यक्ति की संगत किसी भी पल परेशानियों को बढ़ा सकती है। जिस प्रकार कोयले की खान में जाने वाले व्यक्ति के कपड़ों पर दाग लग जाते हैं, ठीक उसी प्रकार नीच व्यक्ति की संगत हमारी प्रतिष्ठा पर दाग लगा सकती है। अत: ऐसे लोगों से दूर ही रहना चाहिए।
6 बातों को हमेशा सोचते रहना चाहिए
6 बातों को हमेशा सोचते रहना चाहिए
पहली बात: यह समय कैसा है
व्यक्ति समझदार और सफल है, जिसे इस प्रश्न का उत्तर हमेशा मालूम रहता है। समझदार व्यक्ति जानता है कि वर्तमान समय कैसा चल रहा है। अभी सुख के दिन हैं या दुख के। इसी के आधार पर वह कार्य करता हैं। यदि सुख के दिन हैं तो अच्छे कार्य करते रहना चाहिए और यदि दुख के दिन हैं तो अच्छे कामों के साथ धैर्य बनाए रखना चाहिए। दुख के दिनों में धैर्य खोने पर अनर्थ हो सकता है।
दूसरी बात: हमारे मित्र कौन-कौन हैं
हमें यह मालूम होना चाहिए कि हमारे सच्चे मित्र कौन-कौन हैं और मित्रों के वेश में शत्रु कौन-कौन हैं। शत्रुओं को तो हम जानते हैं और उनसे बचते हुए ही कार्य करते हैं, लेकिन मित्रों के वेश में छिपे शत्रु का पहचाना बहुत जरूरी है। यदि मित्रों में छिपे शत्रु को नहीं पहचान पाएंगे तो कार्यों में असफलता ही मिलेगी। ऐसे लोगों से भी बचना चाहिए। साथ ही, इस बात का भी ध्यान रखें कि सच्चे मित्र कौन हैं, क्योंकि सच्चे मित्रों की मदद लेने पर ही सफलता मिल सकती है। यदि गलती से मित्र बने हुए शत्रु से मदद मांग ली तो पूरी मेहनत पर पानी फिर सकता है।
तीसरी बात: यह देश कैसा है
यह देश कैसा है यानी जहां हम काम करते हैं, वह स्थान, शहर और वहां के हालात कैसे हैं। कार्यस्थल पर काम करने वाले लोग कैसे हैं। इन बातों का ध्यान रखते हुए काम करेंगे तो असफल होने की संभावनाएं बहुत कम हो जाएंगी।
चौथी बात: हमारी आय और व्यय की सही जानकारी
समझदार इंसान वही है तो अपनी आय और व्यय की सही जानकारी रखता है। व्यक्ति को अपनी आय देखकर ही व्यय करना चाहिए। जो लोग आय से अधिक खर्च करते हैं, वे परेशानियों में अवश्य फंसते हैं। अत: धन संबंधी सुख पाने के लिए कभी आय से अधिक व्यय नहीं करना चाहिए। आय से कम खर्च करेंगे तो थोड़ा-थोड़ा ही सही पर धन संचय हो सकता है।
पांचवीं बात: मैं किसके अधीन हूं
हमें इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि हमारा प्रबंधक, कंपनी, संस्थान या बॉस हमसे क्या चाहता है। हम ठीक वैसे ही काम करें, जिससे संस्थान को लाभ मिलता है। यदि संस्थान को लाभ होगा तो कर्मचारी को भी लाभ मिलने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं।
अंतिम बात: मुझमें कितनी शक्ति है
अंतिम बात सबसे जरूरी है, हमें यह मालूम होना चाहिए कि हम क्या-क्या कर सकते हैं। वही काम हाथ में लेना चाहिए, जिसे पूरा करने का सामर्थ्य हमारे पास है। यदि शक्ति से अधिक काम हम हाथ में ले लेंगे तो असफल होना तय है। ऐसी परिस्थिति में कार्य स्थल और समाज में हमारी छबि पर बुरा असर होगा।
5 ऐसे लोग और चीजें बताई हैं जिनके बीच में निकलना नहीं चाहिए
दो ज्ञानी लोग
जब दो ब्राह्मण या ज्ञानी लोग बात कर रहे हों तो उनके बीच में से निकलना
नहीं चाहिए। एक पुरानी कहावत है ज्ञानी से ज्ञानी मिलें करें ज्ञान की बात।
यानी जब दो ज्ञानी लोग मिलते हैं तो वे ज्ञान की बातें ही करते हैं। अत:
ऐसे समय में उनकी बातचीत में बाधा उत्पन्न नहीं करना चाहिए।
ब्राह्मण और अग्नि
यदि किसी स्थान पर कोई ब्राह्मण अग्नि के पास बैठा हो तो इन दोनों के बीच में से भी नहीं निकलना चाहिए। ऐसी परिस्थिति में यह संभव है कि वह ब्राह्मण हवन या यज्ञ कर रहा हो और हमारी वजह से उसका पूजन अधूरा रह सकता है।
मालिक और नौकर
जब स्वामी और सेवक बातचीत कर रहे हों तो उनके बीच में से भी निकलना नहीं चाहिए। हो सकता है कि स्वामी अपने सेवक को कोई जरूरी काम समझा रहा हो। ऐसे समय पर यदि हम उनके बीच में निकलेंगे तो मालिक और नौकर के बीच संवाद बाधित हो जाएगा।
पति और पत्नी
यदि किसी स्थान पर कोई पति-पत्नी खड़े हों या बैठे हों तो उसके बीच में नहीं निकलना चाहिए। यह अनुचित माना गया है। ऐसा करने पर पति-पत्नी का एकांत भंग होता है। हो सकता है पति-पत्नी, घर-परिवार की किसी गंभीर समस्या पर चर्चा कर रहे हों या निजी बातचीत कर रहे हों तो हमारी वजह से उनके निजी पलों में बाधा उत्पन्न हो सकती है।
हल और बैल
कहीं हल और बैल, एक साथ दिखाई दें तो उनके बीच में से नहीं निकलना चाहिए। यदि इनके बीच में निकलने का प्रयास किया जाएगा तो चोट लग सकती है। अत: हल और बैल से दूर रहना चाहिए।
अनमोल विचार और कथन
अनमोल विचार और कथन
1: ऋण, शत्रु और रोग को समाप्त कर देना चाहिए।
2: वन की अग्नि चन्दन की लकड़ी को भी जला देती है अर्थात
दुष्ट व्यक्ति किसी का भी अहित कर सकते है।
3: शत्रु की दुर्बलता जानने तक उसे अपना मित्र बनाए रखें।
4: सिंह भूखा होने पर भी तिनका नहीं खाता।
5: एक ही देश के दो शत्रु परस्पर मित्र होते है।
6: आपातकाल में स्नेह करने वाला ही मित्र होता है।
7: मित्रों के संग्रह से बल प्राप्त होता है।
8: जो धैर्यवान नहीं है, उसका न वर्तमान है न भविष्य।
9: संकट में बुद्धि ही काम आती है।
10: लोहे को लोहे से ही काटना चाहिए।
11: यदि माता दुष्ट है तो उसे भी त्याग देना चाहिए।
12: यदि स्वयं के हाथ में विष फ़ैल रहा है तो उसे काट देना चाहिए।
13: सांप को दूध पिलाने से विष ही बढ़ता है, न की अमृत।
14: एक बिगड़ैल गाय सौ कुत्तों से ज्यादा श्रेष्ठ है।अर्थात एक विपरीत स्वाभाव
का परम हितैषी व्यक्ति, उन सौ लोगों से श्रेष्ठ है जो आपकी चापलूसी करते
है।
का परम हितैषी व्यक्ति, उन सौ लोगों से श्रेष्ठ है जो आपकी चापलूसी करते
है।
15: कल के मोर से आज का कबूतर भला। अर्थात संतोष सब बड़ा धन है।
16: आग सिर में स्थापित करने पर भी जलाती है। अर्थात दुष्ट व्यक्ति का कितना भी सम्मान कर लें, वह सदा दुःख ही देता है।
17: अन्न के सिवाय कोई दूसरा धन नहीं है।
18: भूख के समान कोई दूसरा शत्रु नहीं है।
19: विद्या ही निर्धन का धन है।
20: विद्या को चोर भी नहीं चुरा सकता।
21: शत्रु के गुण को भी ग्रहण करना चाहिए।
22: अपने स्थान पर बने रहने से ही मनुष्य पूजा जाता है।
23: सभी प्रकार के भय से बदनामी का भय सबसे बड़ा होता है।
24: किसी लक्ष्य की सिद्धि में कभी शत्रु का साथ न करें।
25: आलसी का न वर्तमान होता है, न भविष्य।
26: सोने के साथ मिलकर चांदी भी सोने जैसी दिखाई पड़ती है अर्थात सत्संग का प्रभाव मनुष्य पर अवश्य पड़ता है।
27: ढेकुली नीचे सिर झुकाकर ही कुँए से जल निकालती है। अर्थात कपटी या पापी व्यक्ति सदैव मधुर वचन बोलकर अपना काम निकालते है।
28: सत्य भी यदि अनुचित है तो उसे नहीं कहना चाहिए।
29: समय का ध्यान नहीं रखने वाला व्यक्ति अपने जीवन में निर्विघ्न नहीं रहता।
30: जो जिस कार्ये में कुशल हो उसे उसी कार्ये में लगना चाहिए।
31: दोषहीन कार्यों का होना दुर्लभ होता है।
32: किसी भी कार्य में पल भर का भी विलम्ब न करें।
33: चंचल चित वाले के कार्य कभी समाप्त नहीं होते।
34: पहले निश्चय करिएँ, फिर कार्य आरम्भ करें।
35: भाग्य पुरुषार्थी के पीछे चलता है।
36: अर्थ, धर्म और कर्म का आधार है।
37: शत्रु दण्डनीति के ही योग्य है।
38: कठोर वाणी अग्निदाह से भी अधिक तीव्र दुःख पहुंचाती है।
39: व्यसनी व्यक्ति कभी सफल नहीं हो सकता।
40: शक्तिशाली शत्रु को कमजोर समझकर ही उस पर आक्रमण करे।
41: अपने से अधिक शक्तिशाली और समान बल वाले से शत्रुता न करे।
42: मंत्रणा को गुप्त रखने से ही कार्य सिद्ध होता है।
43: योग्य सहायकों के बिना निर्णय करना बड़ा कठिन होता है।
44: एक अकेला पहिया नहीं चला करता।
45: अविनीत स्वामी के होने से तो स्वामी का न होना अच्छा है।
46: जिसकी आत्मा संयमित होती है, वही आत्मविजयी होता है।
47: स्वभाव का अतिक्रमण अत्यंत कठिन है।
48: धूर्त व्यक्ति अपने स्वार्थ के लिए दूसरों की सेवा करते हैं।
49: कल की हज़ार कौड़ियों से आज की एक कौड़ी भली। अर्थात संतोष सबसे बड़ा धन है।
50: दुष्ट स्त्री बुद्धिमान व्यक्ति के शरीर को भी निर्बल बना देती है।
51: आग में आग नहीं डालनी चाहिए। अर्थात क्रोधी व्यक्ति को अधिक क्रोध नहीं दिलाना चाहिए।
52: मनुष्य की वाणी ही विष और अमृत की खान है।
53: दुष्ट की मित्रता से शत्रु की मित्रता अच्छी होती है।
54: दूध के लिए हथिनी पालने की जरुरत नहीं होती। अर्थात आवश्कयता के अनुसार साधन जुटाने चाहिए।
55: कठिन समय के लिए धन की रक्षा करनी चाहिए।
56: कल का कार्य आज ही कर ले।
57: सुख का आधार धर्म है।
58: धर्म का आधार अर्थ अर्थात धन है।
59: अर्थ का आधार राज्य है।
60: राज्य का आधार अपनी इन्द्रियों पर विजय पाना है।
61: प्रकृति (सहज) रूप से प्रजा के संपन्न होने से नेताविहीन राज्य भी संचालित होता रहता है।
62: वृद्धजन की सेवा ही विनय का आधार है।
63: वृद्ध सेवा अर्थात ज्ञानियों की सेवा से ही ज्ञान प्राप्त होता है।
64: ज्ञान से राजा अपनी आत्मा का परिष्कार करता है, सम्पादन करता है।
65: आत्मविजयी सभी प्रकार की संपत्ति एकत्र करने में समर्थ होता है।
66: जहां लक्ष्मी (धन) का निवास होता है, वहां सहज ही सुख-सम्पदा आ जुड़ती है।
67: इन्द्रियों पर विजय का आधार विनर्मता है।
68: प्रकर्ति का कोप सभी कोपों से बड़ा होता है।
69: शासक को स्वयं योगय बनकर योगय प्रशासकों की सहायता से शासन करना चाहिए।
70: योग्य सहायकों के बिना निर्णय करना बड़ा कठिन होता है।
71: एक अकेला पहिया नहीं चला करता।
72: सुख और दुःख में सामान रूप से सहायक होना चाहिए।
73: स्वाभिमानी व्यक्ति प्रतिकूल विचारों कोसम्मुख रखकर दुबारा उन पर विचार करे।
74: अविनीत व्यक्ति को स्नेही होने पर भी मंत्रणा में नहीं रखना चाहिए।
75: शासक को स्वयं योग्य बनकर योग्य प्रशासकों की सहायता से शासन करना चाहिए।
76: सुख और दुःख में समान रूप से सहायक होना चाहिए।
77: स्वाभिमानी व्यक्ति प्रतिकूल विचारों को सम्मुख रखकर दोबारा उन पर विचार करे।
78: अविनीत व्यक्ति को स्नेही होने पर भी अपनी मंत्रणा में नहीं रखना चाहिए।
79: ज्ञानी और छल-कपट से रहित शुद्ध मन वाले व्यक्ति को ही मंत्री बनाए।
80: समस्त कार्य पूर्व मंत्रणा से करने चाहिए।
81: विचार अथवा मंत्रणा को गुप्त न रखने पर कार्य नष्ट हो जाता है।
82: लापरवाही अथवा आलस्य से भेद खुल जाता है।
83: सभी मार्गों से मंत्रणा की रक्षा करनी चाहिए।
84: मन्त्रणा की सम्पति से ही राज्य का विकास होता है।
85: मंत्रणा की गोपनीयता को सर्वोत्तम माना गया है।
86: भविष्य के अन्धकार में छिपे कार्य के लिए श्रेष्ठ मंत्रणा दीपक के समान प्रकाश देने वाली है।
87: मंत्रणा के समय कर्त्तव्य पालन में कभी ईर्ष्या नहीं करनी चाहिए।
88: मंत्रणा रूप आँखों से शत्रु के छिद्रों अर्थात उसकी कमजोरियों को देखा-परखा जाता है।
89: राजा, गुप्तचर और मंत्री तीनो का एक मत होना किसी भी मंत्रणा की सफलता है।
90: कार्य-अकार्य के तत्वदर्शी ही मंत्री होने चाहिए।
91: छः कानो में पड़ने से (तीसरे व्यक्ति को पता पड़ने से) मंत्रणा का भेद खुल जाता है।
92: अप्राप्त लाभ आदि राज्यतंत्र के चार आधार है।
93: आलसी राजा अप्राप्त लाभ को प्राप्त नहीं करता।
94: आलसी राजा प्राप्त वास्तु की रक्षा करने में असमर्थ होता है।
95: आलसी राजा अपने विवेक की रक्षा नहीं कर सकता।
96: आलसी राजा की प्रशंसा उसके सेवक भी नहीं करते।
97: शक्तिशाली राजा लाभ को प्राप्त करने का प्रयत्न करता है।
98: राज्यतंत्र को ही नीतिशास्त्र कहते है।
99: राज्यतंत्र से संबंधित घरेलु और बाह्य, दोनों कर्तव्यों को राजतंत्र का अंग कहा जाता है।
100: राज्य नीति का संबंध केवल अपने राज्य को सम्रद्धि प्रदान करने वाले मामलो से होता है।
101: निर्बल राजा को तत्काल संधि करनी चाहिए।
102: पडोसी राज्यों से सन्धियां तथा पारस्परिक व्यवहार का आदान-प्रदान और संबंध विच्छेद आदि का निर्वाह मंत्रिमंडल करता है।
103: राज्य को नीतिशास्त्र के अनुसार चलना चाहिए।
104: निकट के राज्य स्वभाव से शत्रु हो जाते है।
105: किसी विशेष प्रयोजन के लिए ही शत्रु मित्र बनता है।
106: आवाप अर्थात दूसरे राष्ट्र से संबंध नीति का परिपालन मंत्रिमंडल का कार्य है।
107: दुर्बल के साथ संधि न करे।
108: ठंडा लोहा लोहे से नहीं जुड़ता।
109: संधि करने वालो में तेज़ ही संधि का हेतु होता है।
110: शत्रु के प्रयत्नों की समीक्षा करते रहना चाहिए।
111: बलवान से युद्ध करना हाथियों से पैदल सेना को लड़ाने के समान है।
112: कच्चा पात्र कच्चे पात्र से टकराकर टूट जाता है।
113: संधि और एकता होने पर भी सतर्क रहे।
114: शत्रुओं से अपने राज्य की पूर्ण रक्षा करें।
115: शक्तिहीन को बलवान का आश्रय लेना चाहिए।
116: दुर्बल के आश्रय से दुःख ही होता है।
117: अग्नि के समान तेजस्वी जानकर ही किसी का सहारा लेना चाहिए।
118: राजा के प्रतिकूल आचरण नहीं करना चाहिए।
119: व्यक्ति को उट-पटांग अथवा गवार वेशभूषा धारण नहीं करनी चाहिए।
120: देवता के चरित्र का अनुकरण नहीं करना चाहिए।
121: ईर्ष्या करने वाले दो समान व्यक्तियों में विरोध पैदा कर देना चाहिए।
122: चतुरंगणी सेना (हाथी, घोड़े, रथ और पैदल) होने पर भी इन्द्रियों के वश में रहने वाला राजा नष्ट हो जाता है।
123: जुए में लिप्त रहने वाले के कार्य पूरे नहीं होते है।
124: शिकारपरस्त राजा धर्म और अर्थ दोनों को नष्ट कर लेता है।
125: शराबी व्यक्ति का कोई कार्य पूरा नहीं होता है।
126: कामी पुरुष कोई कार्य नहीं कर सकता।
127: पूर्वाग्रह से ग्रसित दंड देना लोकनिंदा का कारण बनता है।
128: धन का लालची श्रीविहीन हो जाता है।
129: दण्डनीति के उचित प्रयोग से ही प्रजा की रक्षा संभव है।
130: दंड से सम्पदा का आयोजन होता है।
131: दण्डनीति के प्रभावी न होने से मंत्रीगण भी बेलगाम होकर अप्रभावी हो जाते है।
132: दंड का भय न होने से लोग अकार्य करने लगते है।
133: दण्डनीति से आत्मरक्षा की जा सकती है।
134: आत्मरक्षा से सबकी रक्षा होती है।
135: आत्मसम्मान के हनन से विकास का विनाश हो जाता है।
136: निर्बल राजा की आज्ञा की भी अवहेलना कदापि नहीं करनी चाहिए।
137: अग्नि में दुर्बलता नहीं होती।
138: दंड का निर्धारण विवेकसम्मत होना चाहिए।
139: दंडनीति से राजा की प्रवति अर्थात स्वभाव का पता चलता है।
140: स्वभाव का मूल अर्थ लाभ होता है।
141: अर्थ कार्य का आधार है।
142: धन होने पर अल्प प्रयत्न करने से कार्य पूर्ण हो जाते है।
143: उपाय से सभी कार्य पूर्ण हो जाते है। कोई कार्य कठिन नहीं रहता।
144: बिना उपाय के किए गए कार्य प्रयत्न करने पर भी बचाए नहीं जा सकते, नष्ट हो जाते है।
145: कार्य करने वाले के लिए उपाय सहायक होता है।
146: कार्य का स्वरुप निर्धारित हो जाने के बाद वह कार्य लक्ष्य बन जाता है।
147: अस्थिर मन वाले की सोच स्थिर नहीं रहती।
148: कार्य के मध्य में अति विलम्ब और आलस्य उचित नहीं है।
149: कार्य-सिद्धि के लिए हस्त-कौशल का उपयोग करना चाहिए।
150: भाग्य के विपरीत होने पर अच्छा कर्म भी दुखदायी हो जाता है।
151: अशुभ कार्यों को नहीं करना चाहिए।
152: समय को समझने वाला कार्य सिद्ध करता है।
153: समय का ज्ञान न रखने वाले राजा का कर्म समय के द्वारा ही नष्ट हो जाता है।
154: देश और फल का विचार करके कार्ये आरम्भ करें।
155: नीतिवान पुरुष कार्य प्रारम्भ करने से पूर्व ही देश-काल की परीक्षा कर लेते है।
156: परीक्षा करने से लक्ष्मी स्थिर रहती है।
157: सभी प्रकार की सम्पति का सभी उपायों से संग्रह करना चाहिए।
158: बिना विचार कार्ये करने वालो को भाग्यलक्ष्मी त्याग देती है।
Quote 159: ज्ञान अर्थात अपने अनुभव और अनुमान के द्वारा कार्य की परीक्षा करें।
160: उपायों को जानने वाला कठिन कार्यों को भी सहज बना लेता है।
161: सिद्ध हुए कार्ये का प्रकाशन करना ही उचित कर्तव्य होना चाहिए।
162: संयोग से तो एक कीड़ा भी स्तिथि में परिवर्तन कर देता है।
163: अज्ञानी व्यक्ति के कार्य को बहुत अधिक महत्तव नहीं देना चाहिए।
164: ज्ञानियों के कार्य भी भाग्य तथा मनुष्यों के दोष से दूषित हो जाते है।
165: भाग्य का शमन शांति से करना चाहिए।
166: मनुष्य के कार्ये में आई विपति को कुशलता से ठीक करना चाहिए।
167: मुर्ख लोग कार्यों के मध्य कठिनाई उत्पन्न होने पर दोष ही निकाला करते है।
168: कार्य की सिद्धि के लिए उदारता नहीं बरतनी चाहिए।
169: दूध पीने के लिए गाय का बछड़ा अपनी माँ के थनों पर प्रहार करता है।
170: जिन्हें भाग्य पर विश्वास नहीं होता, उनके कार्य पुरे नहीं होते।
180: प्रयत्न न करने से कार्य में विघ्न पड़ता है।
181: जो अपने कर्तव्यों से बचते है, वे अपने आश्रितों परिजनों का भरण-पोषण नहीं कर पाते।
182: जो अपने कर्म को नहीं पहचानता, वह अँधा है।
183: प्रत्यक्ष और परोक्ष साधनों के अनुमान से कार्य की परीक्षा करें।
184: निम्न अनुष्ठानों (भूमि, धन-व्यापार उधोग-धंधों) से आय के साधन भी बढ़ते है।
185: विचार न करके कार्ये करने वाले व्यक्ति को लक्ष्मी त्याग देती है।
186: परीक्षा किये बिना कार्य करने से कार्य विपत्ति में पड़ जाता है।
187: परीक्षा करके विपत्ति को दूर करना चाहिए।
188: अपनी शक्ति को जानकार ही कार्य करें।
189: स्वजनों को तृप्त करके शेष भोजन से जो अपनी भूख शांत करता है, वाह अमृत भोजी कहलाता है।
190: कायर व्यक्ति को कार्य की चिंता नहीं होती।
191: अपने स्वामी के स्वभाव को जानकार ही आश्रित कर्मचारी कार्य करते है।
192: गाय के स्वभाव को जानने वाला ही दूध का उपभोग करता है।
193: नीच व्यक्ति के सम्मुख रहस्य और अपने दिल की बात नहीं करनी चाहिए।
194: कोमल स्वभाव वाला व्यक्ति अपने आश्रितों से भी अपमानित होता है।
195: कठोर दंड से सभी लोग घृणा करते है।
196: राजा योग्य अर्थात उचित दंड देने वाला हो।
197: अगम्भीर विद्वान को संसार में सम्मान नहीं मिलता।
198: महाजन द्वारा अधिक धन संग्रह प्रजा को दुःख पहुँचाता है।
199: अत्यधिक भार उठाने वाला व्यक्ति जल्दी थक जाता है।
200: सभा के मध्य जो दूसरों के व्यक्तिगत दोष दिखाता है, वह स्वयं अपने दोष दिखाता है।
201: मुर्ख लोगों का क्रोध उन्हीं का नाश करता है।
202: सच्चे लोगो के लिए कुछ भी अप्राप्य नहीं।
203: केवल साहस से कार्य-सिद्धि संभव नहीं।
204: व्यसनी व्यक्ति लक्ष्य तक पहुँचने से पहले ही रुक जाता है।
205: असंशय की स्तिथि में विनाश से अच्छा तो संशय की स्तिथि में हुआ विनाश होता है।
206: दूसरे के धन पर भेदभाव रखना स्वार्थ है।
207: न्याय विपरीत पाया धन, धन नहीं है।
208: दान ही धर्म है।
209: अज्ञानी लोगों द्वारा प्रचारित बातों पर चलने से जीवन व्यर्थ हो जाता है।
210: न्याय ही धन है।
211: जो धर्म और अर्थ की वृद्धि नहीं करता वह कामी है।
212: धर्मार्थ विरोधी कार्य करने वाला अशांति उत्पन्न करता है।
213: सीधे और सरल व्तक्ति दुर्लभता से मिलते है।
214: निकृष्ट उपायों से प्राप्त धन की अवहेलना करने वाला व्यक्ति ही साधू होता है।
215: बहुत से गुणों को एक ही दोष ग्रस लेता है।
216: महात्मा को पराए बल पर साहस नहीं करना चाहिए।
217: चरित्र का उल्लंघन कदापि नहीं करना चाहिए।
218: विश्वास की रक्षा प्राण से भी अधिक करनी चाहिए।
219: चुगलखोर श्रोता के पुत्र और पत्नी उसे त्याग देते है।
220: बच्चों की सार्थक बातें ग्रहण करनी चाहिए।
221: साधारण दोष देखकर महान गुणों को त्याज्य नहीं समझना चाहिए।
222: ज्ञानियों में भी दोष सुलभ है।
223: रत्न कभी खंडित नहीं होता। अर्थात विद्वान व्यक्ति में कोई साधारण दोष होने पर उस पर ज्यादा ध्यान नहीं देना चाहिए।
224: मर्यादाओं का उल्लंघन करने वाले का कभी विश्वास नहीं करना चाहिए।
225: शत्रु द्वारा किया गया स्नेहिल व्यवहार भी दोषयुक्त समझना चाहिए।
226: सज्जन की राय का उल्लंघन न करें।
227: गुणी व्यक्ति का आश्रय लेने से निर्गुणी भी गुणी हो जाता है।
228: दूध में मिला जल भी दूध बन जाता है।
229: मृतिका पिंड (मिट्टी का ढेला) भी फूलों की सुगंध देता है।
अर्थात सत्संग का प्रभाव मनुष्य पर अवशय पड़ता है जैसे जिस मिटटी में फूल
खिलते है उस मिट्टी से भी फूलों की सुगंध आने लगती है।
230: मुर्ख व्यक्ति उपकार करने वाले का भी अपकार करता है। इसके विपरीत जो इसके विरुद्ध आचरण करता है, वह विद्वान कहलाता है।
231: मछेरा जल में प्रवेश करके ही कुछ पाता है।
231: राजा अपने बल-विक्रम से धनी होता है।
233: शत्रु भी उत्साही व्यक्ति के वश में हो जाता है।
234: उत्साहहीन व्यक्ति का भाग्य भी अंधकारमय हो जाता है।
235: पाप कर्म करने वाले को क्रोध और भय की चिंता नहीं होती।
236: अविश्वसनीय लोगों पर विश्वास नहीं करना चाहिए।
237: विष प्रत्येक स्तिथि में विष ही रहता है।
238: कार्य करते समय शत्रु का साथ नहीं करना चाहिए।
239: राजा की भलाई के लिए ही नीच का साथ करना चाहिए।
240: संबंधों का आधार उद्देश्य की पूर्ति के लिए होता है।
241: शत्रु का पुत्र यदि मित्र है तो उसकी रक्षा करनी चाहिए।
242: शत्रु के छिद्र (दुर्बलता) पर ही प्रहार करना चाहिए।
243: अपनी कमजोरी का प्रकाशन न करें।
244: एक अंग का दोष भी पुरुष को दुखी करता है।
245: शत्रु छिद्र (कमजोरी) पर ही प्रहार करते है।
246: हाथ में आए शत्रु पर कभी विश्वास न करें।
247: स्वजनों की बुरी आदतों का समाधान करना चाहिए।
248: स्वजनों के अपमान से मनस्वी दुःखी होते है।
249: सदाचार से शत्रु पर विजय प्राप्त की जा सकती है।
250: विकृतिप्रिय लोग नीचता का व्यवहार करते है।
251: नीच व्यक्ति को उपदेश देना ठीक नहीं।
252: नीच लोगों पर विश्वास नहीं करना चाहिए।
253: भली प्रकार से पूजने पर भी दुर्जन पीड़ा पहुंचाता है।
254: कभी भी पुरुषार्थी का अपमान नहीं करना चाहिए।
255: क्षमाशील पुरुष को कभी दुःखी न करें।
256: क्षमा करने योग्य पुरुष को दुःखी न करें।
257: स्वामी द्वारा एकांत में कहे गए गुप्त रहस्यों को मुर्ख व्यक्ति प्रकट कर देते हैं।
258: अनुराग अर्थात प्रेम फल अथवा परिणाम से ज्ञात होता है।
259: ज्ञान ऐश्वर्य का फल है।
260: मुर्ख व्यक्ति दान देने में दुःख का अनुभव करता है।
261: विवेकहीन व्यक्ति महान ऐश्वर्य पाने के बाद भी नष्ट हो जाते है।
262: धैर्यवान व्यक्ति अपने धैर्ये से रोगों को भी जीत लेता है।
263: गुणवान क्षुद्रता को त्याग देता है।
264: कमजोर शरीर में बढ़ने वाले रोग की उपेक्षा न करें।
265: शराबी के हाथ में थमें दूध को भी शराब ही समझा जाता है।
266: यदि न खाने योग्य भोजन से पेट में बदहजमी हो जाए तो ऐसा भोजन कभी नहीं करना चाहिए।
267: आवश्यकतानुसार कम भोजन करना ही स्वास्थ्य प्रदान करता है।
268: खाने योग्य भी अपथ्य होने पर नहीं खाना चाहिए।
269: दुष्ट के साथ नहीं रहना चाहिए।
270: जब कार्यों की अधिकता हो, तब उस कार्य को पहले करें, जिससे अधिक फल प्राप्त होता है।
271: अजीर्ण की स्थिति में भोजन दुःख पहुंचाता है।
272:रोग शत्रु से भी बड़ा है।
273: सामर्थ्य के अनुसार ही दान दें।
274: चालाक और लोभी बेकार में घनिष्ठता को बढ़ाते है।
275: लोभ बुद्धि पर छा जाता है, अर्थात बुद्धि को नष्ट कर देता है।
276: अपने तथा अन्य लोगों के बिगड़े कार्यों का स्वयं निरिक्षण करना चाहिए।
277: मूर्खों में साहस होता ही है। (यहाँ साहस का तात्पर्ये चोरी-चकारी, लूट-पाट, हत्या आदि से है )
278: मूर्खों से विवाद नहीं करना चाहिए।
279: मुर्ख से मूर्खों जैसी ही भाषा बोलें।
280: मुर्ख का कोई मित्र नहीं है।
281: धर्म के समान कोई मित्र नहीं है।
282: धर्म ही लोक को धारण करता है।
283: प्रेत भी धर्म-अधर्म का पालन करते है।
284: दया धरम की जन्मभूमि है।
285: धर्म का आधार ही सत्य और दान है।
286: धर्म के द्वारा ही लोक विजय होती है।
287: मृत्यु भी धरम पर चलने वाले व्यक्ति की रक्षा करती है।
288: जहाँ पाप होता है, वहां धर्म का अपमान होता है।
289: लोक-व्यवहार में कुशल व्यक्ति ही बुद्धिमान है।
290: सज्जन को बुरा आचरण नहीं करना चाहिए।
291: विनाश का उपस्थित होना सहज प्रकर्ति से ही जाना जा सकता है।
292: अधर्म बुद्धि से आत्मविनाश की सुचना मिलती है।
293: चुगलखोर व्यक्ति के सम्मुख कभी गोपनीय रहस्य न खोलें।
294: राजा के सेवकों का कठोर होना अधर्म माना जाता है।
295: दूसरों की रहस्यमयी बातों को नहीं सुनना चाहिए।
296: स्वजनों की सीमा का अतिक्रमण न करें।
297: पराया व्यक्ति यदि हितैषी हो तो वह भाई है।
298: उदासीन होकर शत्रु की उपेक्षा न करें।
299: अल्प व्यसन भी दुःख देने वाला होता है।
300: स्वयं को अमर मानकर धन का संग्रह करें।
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