भारत का राष्ट्रीय ध्वज
भारत का राष्ट्रीय ध्वज एक राष्ट्रीय प्रतीक
है जिसे क्षैतिज आयताकार में बनाया गया है। इसे तीन रंगों की मदद से सजाया गया है
जिसमें गहरा केसरिया (सबसे ऊपर), सफेद( बीच में)
और हरा (सबसे नीचे)। सफेद रंग के बीचों-बीच एक नीले रंग का अशोक चक्र (अर्थात
कानून का चक्र) बना हुआ है जिसमें 24 तिलियाँ है। 22 जुलाई 1947 में भारत के संविधान सभा ने एक मीटिंग में
राष्ट्रीय ध्वज के वर्तमान स्वरुप को स्वीकार किया था
भारतीय ध्वज को एक खास किस्म के कपड़े से
बनाया गया है जिसे ख़ादी कहते है (हाथ से काता हुआ जिसे महात्मा गाँधी द्वारा
प्रसिद्ध किया गया)। इसके निर्माण और डिज़ाइन के लिये भारतीय स्टैन्डर्ड ब्यूरो
जिम्मेदार होता है जबकि, ख़ादी विकास एवं ग्रामीण उद्योग कमीशन को
इसके निर्माण का अधिकार है। 2009 में राष्ट्रीय
ध्वज का अकेला निर्माण कर्ता कर्नाटक ख़ादी ग्रामोंद्योग संयुक्त्त संघ रहा है।
केसरिया रंग
राष्ट्रीय
ध्वज का सबसे ऊपरी भाग केसरिया रंग है; जो बलिदान
का प्रतीक है राष्ट्र के प्रति हिम्मत और नि:स्वार्थ भावना को दिखाता है। ये बेहद
आम और हिन्दू, बौद्ध और जैन जैसे धर्मों के लिये
धार्मिक महत्व का रंग है। केसरिया रंग विभिन्न धर्मों से संबंधित लोगों के अहंकार
से मुक्ति और त्याग को इंगित करता है और लोगों को एकजुट बनाता है। केसरिया का अपना
अलग महत्व है जो हमारे राजनीतिक नेतृत्व को याद दिलाता है कि उनकी ही तरह हमें भी
किसी व्यक्तिगत लाभ की इच्छा के पूरे समर्पण के साथ राष्ट्र की भलाई के लिये काम
करना चाहिये।
सफेद रंग
राष्ट्रीय
ध्वज के बीच का भाग सफेद रंग से डिज़ाइन किया गया है जो राष्ट्र की शांति, शुद्धता और ईमानदारी को प्रदर्शित करता है। भारतीय दर्शन
शास्त्र के मुताबिक,
सफेद रंग स्वच्छता और ज्ञान को भी
दर्शाता है। राष्ट्र के मार्गदर्शन के लिये सच्चाई की राह पर ये रोशनी बिखेरता है।
शांति की स्थिति को कायम रखने के दौरान मुख्य राष्ट्रीय उद्देश्य की प्राप्ति के
लिये देश के नेतृत्व के लिये भारतीय राजनीतिक नेताओं का ये स्मरण कराता है।
हरा रंग
तिरंगे के
सबसे निचले भाग में हरा रंग है जो विश्वास, उर्वरता ; खुशहाली ,समृद्धि और
प्रगति को इंगित करता है। भारतीय दर्शनशास्त्र के अनुसार, हरा रंग उत्सवी और दृढ़ता का रंग है जो जीवन और खुशी को
दिखाता है। ये पूरे भारत की धरती पर हरियाली को दिखाता है। ये भारत के राजनीतिक
नेताओं को याद दिलाता है कि उन्हें भारत की मिट्टी की बाहरी और आंतरिक दुश्मनों से
सुरक्षा करनी है।
अशोक चक्र और 24 तिलीयाँ
हिन्दू
धर्म के अनुसार, पुराणों में 24 संख्या बहुत महत्व रखता है। अशोक चक्र को धर्म चक्र माना जाता
है जो कि समय चक्र भी कहलाता है। अशोक चक्र के बीच में 24 तिलीयाँ है जो पूरे दिन के 24 बहुमूल्य
घंटों को दिखाता है। ये हिन्दू धर्म के 24 धर्म
ऋषियों को भी प्रदर्शित करता है जो “गायत्री
मंत्र” की पूरी शक्ति को रखता है (हिन्दू धर्म
का सबसे शक्तिशाली मंत्र)। हिमालय के सभी 24 धर्म
ऋषियों को 24 अक्षरों के अविनाशी गायत्री मंत्र के
साथ प्रदर्शित किया जाता है (पहला अक्षर विश्वामित्र जी के बारे वर्णन करता है
वहीं अंतिम अक्षर यज्ञवल्क्या को जिन्होंने धर्म पर शासन किया)।
1. भारत के राष्ट्रीय ध्वज को “तिरंगा” नाम से भी सम्बोधित करते हैं. इस
नाम के पीछे की वजह इसमें इस्तेमाल होने वाले तीन रंग हैं, केसरिया, सफ़ेद और हरा।
2. भारत के राष्ट्रीय ध्वज में जब चरखे
की जगह अशोक चक्र लिया गया तो महात्मा
गांधी नाराज हो गए थे। उन्होनें ये भी कहा
था कि मैं अशोक चक्र वाले झंडे को सलाम नही करूँगा।
3. संसद भवन देश का एकमात्र ऐसा भवन
हैं जिस पर एक साथ 3 तिरंगे
फहराए जाते हैं।
4 किसी
मंच पर तिरंगा फहराते समय जब बोलने वाले का मुँह श्रोताओं की तरफ हो तब तिरंगा
हमेशा उसके दाहिने तरफ होना चाहिए।
5. राँची का ‘पहाड़ी मंदिर’ भारत का अकेला ऐसा मंदिर हैं जहाँ
तिरंगा फहराया जाता हैं। 493 मीटर की ऊंचाई पर देश का सबसे ऊंचा
झंडा भी राँची में ही फहराया गया हैं।
6. क्या आप जानते हैं कि देश में ‘फ्लैग कोड ऑफ इंडिया’ (भारतीय ध्वज संहिता) नाम का एक कानून है, जिसमें तिरंगे को फहराने के कुछ नियम-कायदे निर्धारित किए गए हैं।
7. यदि कोई शख्स ‘फ्लैग कोड ऑफ इंडिया’ के तहत गलत तरीके से तिरंगा फहराने
का दोषी पाया जाता है तो उसे जेल भी हो सकती है। इसकी अवधि तीन साल तक बढ़ाई जा
सकती है या जुर्माना लगाया जा सकता है या दोनों भी हो सकते हैं।
9तिरंगे
का निर्माण हमेशा रेक्टेंगल शेप में ही होगा। जिसका अनुपात 3 : 2 ही होना चाहिए। जबकि अशोक चक्र का
कोई माप तय नही हैं सिर्फ इसमें 24 तिल्लियां
होनी आवश्यक हैं।
10. सबसे पहले लाल, पीले व हरे रंग की हॉरिजॉन्टल
पट्टियों पर बने झंडे को 7 अगस्त
1906 को पारसी बागान चौक (ग्रीन पार्क), कोलकाता में फहराया गया था।
11. झंडे पर कुछ भी बनाना या लिखना
गैरकानूनी हैं।
12. किसी भी गाड़ी के पीछे, बोट या प्लेन में तिरंगा यूज़ नहीं
किया जा सकता है। इसका प्रयोग किसी बिल्डिंग को ढकने में भी नहीं किया जा सकता
हैं।
13. किसी भी स्तिथि में झंडा (तिरंगा)
जमीन पर टच नहीं होना चाहिए।
झंडे का यूज़ किसी भी प्रकार के यूनिफॉर्म या सजावट के
सामान में नहीं हो सकता।
15. भारत में बेंगलुरू से 420 किमी स्थित ‘हुबली‘ एक मात्र लाइसेंस प्राप्त संस्थान
हैं जो झंडा बनाने का और सप्लाई करने का काम करता हैं।
16. किसी भी दूसरे झंडे को राष्ट्रीय
झंडे से ऊंचा या ऊपर नहीं लगा सकते और न ही बराबर रख सकते हैं।
17. 29 मई 1953 में भारत का राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा सबसे ऊंची पर्वत की
चोटी माउंट एवरेस्ट पर यूनियन जैक तथा नेपाली राष्ट्रीय ध्वज के साथ फहराता नजर
आया था इस समय शेरपा तेनजिंग और एडमंड माउंट हिलेरी ने एवरेस्ट फतह की थी।
18. लोगो को अपने घरों या आफिस में आम
दिनों में भी तिरंगा फहराने की अनुमति 22 दिसंबर
2002 के बाद मिली।
19. तिरंगे को रात में फहराने की अनुमति
सन् 2009 में दी गई।
पूरे भारत में 21 × 14 फीट
के झंडे केवल तीन जगह पर ही फहराए जाते हैं: कर्नाटक का नारगुंड किला, महाराष्ट्र का पनहाला किला और मध्य
प्रदेश के ग्वालियर जिले में स्थित किला।
21. राष्ट्रपति भवन के संग्रहालय में एक
ऐसा लघु तिरंगा हैं, जिसे
सोने के स्तंभ पर हीरे-जवाहरातों से जड़ कर बनाया गया हैं।
आज जो तिरंगा फहराया जाता हैं
उसे किसने बनाया ?
अभी जो तिरंगा फहराया जाता है उसे 22 जुलाई 1947 को अपनाया गया था। तिरंगे को
आंध्रप्रदेश के पिंगली वैंकैया ने बनाया था। इनकी मौत सन् 1963 में बहुत ही गरीबी में एक झोपड़ी
में हुई। मौत के 46 साल
बाद डाक टिकट जारी करके इनको सम्मान दिया गया
तिरंगे को कब झुकाया जाता हैं ?
भारत के संविधान के अनुसार जब किसी राष्ट्र विभूति का निधन
होता हैं व राष्ट्रीय शोक घोषित होता हैं, तब
कुछ समय के लिए ध्वज को झुका दिया जाता हैं। लेकिन सिर्फ उसी भवन का तिरंगा झुका
रहेगा, जिस भवन में उस विभूति का पार्थिव
शरीर रखा हैं। जैसे ही पार्थिव शरीर को भवन से बाहर निकाला जाता हैं वैसे ही ध्वज
को पूरी ऊंचाई तक फहरा दिया जाता हैं।
शहीदों के शवों पर लिपटे तिरंगे
का क्या होता हैं ?
देश के लिए जान देने वाले शहीदों और देश की महान शख्सियतों
को तिरंगे में लपेटा जाता हैं। इस दौरान केसरिया पट्टी सिर की तरफ और हरी पट्टी
पैरों की तरफ होनी चाहिए। शवों के साथ तिरंगे को जलाया या दफनाया नही जाता बल्कि
उसे हटा लिया जाता हैं। बाद में या तो उसे
गोपनीय तरीके से सम्मान के साथ जला दिया जाता हैं या फिर वजन बांधकर पवित्र नदी
में जल समाधि दे दी जाती हैं। कटे-फटे या रंग उड़े हुए तिरंगे के साथ भी ऐसा ही
किया जाता हैं।
राज्य वृक्ष - खेजड़ी
"रेगिस्तान
का गौरव" अथवा "थार का कल्पवृक्ष" जिसका वैज्ञानिक नाम
"प्रोसेसिप-सिनेरेरिया" है। इसको 1983 में राज्य वृक्ष घोषित किया गया।
खेजड़ी के वृक्ष सर्वाधिक
शेखावटी क्षेत्र में देखे जा सकते है तथा नागौर जिले सर्वाधिक है। इस वृक्ष की
पुजा विजयाशमी/दशहरे पर की जाती है। खेजड़ी के वृक्ष के निचे गोगाजी व झुंझार बाबा
का मंदिर/थान बना होता है। खेजड़ी को पंजाबी व हरियाणावी में जांटी व तमिल भाषा
में पेयमेय कन्नड़ भाषा में बन्ना-बन्नी, सिंधी भाषा में - धोकड़ा व बिश्नोई सम्प्रदाय के लोग 'शमी' के नाम से जानते है।
स्थानीय भाषा में सीमलो कहते हैं।
खेजडी की हरी फली-सांगरी, सुखी फली- खोखा, व पत्तियों से बना चारा
लुंग/लुम कहलाता है।
खेजड़ी के वृक्ष को
सेलेस्ट्रेना(कीड़ा) व ग्लाइकोट्रमा(कवक) नामक दो किड़े नुकसान पहुँचाते है।
राज्य पुष्प - रोहिडा का फुल
रोहिडा
के फुल को 1983 में राज्य पुष्प घोषित किया गया। इसे
"मरूशोभा" या "रेगिस्थान का सागवान" भी कहते है। इसका
वैज्ञानिक नाम- "टिको-मेला अंडुलेटा" है।
रोहिड़ा
सर्वाधिक राजस्थान के पष्चिमी क्षेत्र में देखा जा सकता है।रोहिडे़ के पुष्प
मार्च-अप्रैल के महिने मे खिलते है।इन पुष्पों का रंग गहरा केसरिया-हीरमीच पीला
होता है।
जोधपुर
में रोहिड़े को मारवाड़ टीक के नाम से जाना जाता है।
राज्य पशु - चिंकारा, ऊँट
चिंकारा-
चिंकारा को 1981 में राज्य पशु घोषित किया गया।यह
"एन्टीलोप" प्रजाती का एक मुख्य जीव है। इसका वैज्ञानिक नाम गजैला-गजैला
है। चिंकारे को छोटा हरिण के उपनाम से भी जाना जाता है।चिकारों के लिए नाहरगढ़
अभ्यारण्य जयपुर प्रसिद्ध है।राजस्थान का राज्य पशु 'चिंकारा' सर्वाधिक 'मरू भाग' में पाया जाता है।
"चिकारा" नाम से राजस्थान में एक तत् वाद्य
यंत्र भी है।
ऊँट-
राजस्थान का राज्यपशु(2014
में घोषित)
ऊँट
डोमेस्टिक एनिमल के रूप में संरक्षित श्रेणी में और चिंकारा नाॅन डोमेस्टिक एनिमल
के रूप में संरक्षित श्रेणी में रखा जाएगा।
राज्य पक्षी - गोेडावण
1981 में इसे राज्य पक्षी के तौर पर घोषित किया गया।
इसे ग्रेट इंडियन बस्टर्ड भी कहा जाता है। यह शर्मिला पक्षी है और इसे पाल-मोरडी व
सौन-चिडिया भी कहा जाता है। इसका वैज्ञानिक नाम
"क्रोरियोंटिस-नाइग्रीसेप्स" है।
गोडावण
को सारंग, कुकना, तुकदर, बडा तिलोर के नाम से भी जाना जाता है। गोडावण को हाडौती
क्षेत्र(सोरसेन) में माल गोरड़ी के नाम से जाना जाता है।
गोडावण
पक्षी राजस्थान में 3 जिलों में सर्वाधिक देखा जा सकता है।
- मरूउधान- जैसलमेर, बाड़मेर
- सोरसन- बांरा
- सोकंलिया- अजमेर
गोडावण
के प्रजनन के लिए जोधपुर जंतुआलय प्रसिद्ध है।
गोडावण का प्रजनन
काल अक्टूबर-नवम्बर का महिना माना जाता है।यह मुलतः अफ्रीका का पक्षी है।इसका ऊपरी
भाग का रंग नीला होता है व इसकी ऊँचाई 4 फुट होती है।इनका प्रिय भोजन मूगंफली व तारामीरा
है।गोडावण को राजस्थान के अलावा गुजरात में भी सर्वाधिक देखा जा सकता
राज्य गीत -"केसरिया बालम आओ नी पधारो म्हारे
देश।"
इस गीत
को सर्वप्रथम उदयपुर की मांगी बाई के द्वारा गया।इस गीत को अन्तराष्ट्रीय स्तर पर
बीकानेर की अल्ला जिल्ला बाई के द्वारा गाया गया। अल्ला जिल्ला बाई को राज्य की
मरूकोकिला कहते है। इस गीत को मांड गायिकी में गाया जाता है।
राजस्थान का राज्य नृत्य - घुमर
धूमर
(केवल महिलाओं द्वारा किया जाने वाला नृत्य) इस राज्य नृत्यों का सिरमौर (मुकुट)
राजस्थानी नृत्यों की आत्मा कहा जाता है।
राज्य शास्त्रीय नृत्य - कत्थक
कत्थक
उत्तरी भारत का प्रमुख नृत्य है। इनका मुख्य घराना भारत में लखनऊ है तथा राजस्थान
में जयपुर है।
कत्थक के
जन्मदाता भानू जी महाराज को माना जाता है।
राजस्थान का राज्य खेल - बास्केटबाॅल
बास्केटबाॅंल
को राज्य खेल का दर्जा 1948 में दिया
गया।
No comments:
Post a Comment